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पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/४१

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अगर राजा प्रजा के बाग़ से एक सेब खाले तो नौकर लोग उस वृक्ष की जड़ तक खोद खाते हैं।

[२] दूसरे प्रकरण में सादी ने पाखण्डी साधुओं, मौलवियों और फ़क़ीरों को शिक्षा दी है। जिन्हें उस प्राचीन काल में भी इसकी कुछ कम आवश्यकता न थी। सादी को पण्डितों, मौलवी-मुल्लाओं के साथ रहने के बहुत अवसर मिले थे। अतएव वह उनके रंग-ढंग को भली भांति जानते थे। इन उपदेशों में बारम्बार समझाया है कि मौलवियों को सन्तोष रखना चाहिये। उन्हें राजा रईसों की खुशामद करने की ज़रूरत नहीं। गेरुवे बाने की भाड़ में स्वार्थ सिद्ध करने को वह अत्यन्त घृणा की दृष्टि से देखते थे। उनके कथनानुसार किसी बने हुए साधु से भोग-विलास में फँसा हुआ मनुष्य अच्छा है क्योंकि वह किसी को धोखा तो देना नहीं चाहता।

मुझे याद है कि एक बार जब मैं बाल्यावस्था में सारी रात क़ुरान पढ़ता रहा तो कई आदमी मेरे पास पड़े खर्राटे ले रहे थे। मैंने अपने पूज्य पिता से कहा इन सोने वालों को देखिये, निमाज़ पढ़ना तो दूर रहा कोई सिर भी नहीं उठाता। पिता जी ने उत्तर दिया, बेटा, तू भी सो जाता तो अच्छा होता कि इस छिद्रान्वेषण से तो बच जाता।