पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(४२)

किन्तु प्रीति-पालन करना नहीं जानते। बूढ़े ने समझा कि इस भाषण ने कामिनी को मोहित कर लिया लेकिन अकस्मात युवती ने एक गहरी साँस ली और बोली "आपने बहुत अच्छी अच्छी बातें कहीं लेकिन उनमें से एक भी मुझे इतनी नहीं जचती जितनी मेरी दाई का यह वाक्य कि युवती को तीर का घाव उतना दुखदाई नहीं होता जितना वृद्ध मनुष्य का सरवास।"


दयारेबक्र में मैं एक वृद्ध धनवान मनुष्य का अतिथि था। उसके एक रूपवान पुत्र था। एक दिन उसने कहा "इस लड़के के सिवा मेरे और कोई सन्तान नहीं हुई। यहां से पासही एक पवित्र वृक्ष है, लोग वहां जाकर मन्नतें मानते हैं। कितनी ही रात मैंने उस वृक्ष के नीचे ईश्वर से विनती की, तब मुझे यह पुत्र प्राप्त हुआ।" उधर लड़का धीरे धीरे मित्रों से कह रहा था "यदि मुझे उस वृक्ष का पता होता तो जा कर ईश्वर से पिता की मृत्यु के लिए विनय करता।"


मेरे मित्रों में एक युवक बड़ा प्रसन्न-चित्त, हंस-मुख और रसिक था। शोक उसके हृदय में घुसने भी न पाता था। कुछ दिनों तक उस से मिलने का संयोग न हुआ इसके बाद जब भेंट हुई तो देखा कि उसके घर में स्त्री और बच्चे हैं। साथही न वह पहले की सी मनोरञ्जकता है