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पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/४८

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न उत्साह। पूछा क्या हाल है? बोला, जब बच्चों का बोप हो गया तो बच्चों का खिलाड़ीपन कहां से लाऊं? अवस्थानुकूल ही सब बातें शोभा देती हैं।


एक बार युवावस्था में मैंने अपनी माता से कुछ कठोर बातें कह दीं। माता दुःखी होकर एक कोने में जा बैठी और रो कर कहने लगी, बचपन भूल गया, इसी लिये अब मुंह से ऐसी बातें निकलती हैं।


एक बूढ़े से लोगों ने पूछा विवाह क्यों नहीं करते? वह बोला वृद्धा स्त्रियों से मैं विवाह नहीं करना चाहता लोगों ने कहा, तो किसी युवती से ब्याह करलो। बोला, जब मैं बूढ़ा हो कर बूढ़ी स्त्रियों से भागता हूं तो वह युवती हो कर बूढ़े मनुष्य को कैसे चाहैंगी?


[४] चौथा प्रकरण बहुत छोटा है और उसमें मितभाषी होने का जो उपदेश किया गया है उसकी सभी बातों से आजकल के शिक्षित लोग सहमत न होंगे, जिनका सिद्धान्त ही है कि अपनी राई भर बुद्धि को पर्वत बनाकर दिखाया जाय। आजकल विनय अयोग्यता की द्योतक समझी जाती है और वही मनुष्य चलते-पुरज़े और