में युवावस्था दूसरे में वृद्धावस्था का। युवावस्था में हमारी मनोवृत्तियां कैसी होती हैं, हमारे क्या कर्तव्य होते हैं, हम वासनाओं में किस प्रकार लिप्त हो जाते हैं बुढ़ापे में हमें क्या अनुभव होते हैं, मन में क्या अभिलाषायें रहती हैं हमारे क्या कर्तव्य होने चाहिये। इन सब विषयों को सादी ने इस तरह वर्णन किया है मानो वह भी सदाचार के अङ्ग हैं। इस में कितनी ही कथायें ऐसी हैं कि जिनसे मनोरञ्जन के सिवा कोई नतीजा नहीं निकलता, वरन कुछ कथायें ऐसी भी हैं जिन को गुलिस्ताँ जैसे ग्रन्थ में स्थान न मिलना चाहिये था। विशेषतः युवावस्था का वर्णन करते हुए तो ऐसा मालूम होता है मानो सादी को जवानी का नशा चढ़ गया था।
[७] सातवां प्रकरण शिक्षा से सम्बन्ध रखता है। सादी को शिक्षकों के दोष और गुण, शिष्य और गुरु के पारस्परिक व्यवहार और शिक्षा के फल और विफल का अच्छा वर्णन किया है। उनका सिद्धान्त था कि शिक्षा चाहे कितनी ही उत्तम हो मानव स्वभाव को नहीं बदल सकती, और शिक्षक चाहे कितना ही विद्वान् और सच्चरित्र क्यों न हो कठोरता के बिना अपने कार्य में सफल नहीं हो सकता। यद्यपि आजकल यह सिद्धान्त निर्भ्रान्त नहीं माने जा सकते तथापि यह नहीं कहा जा सक्ता कि उनमें कुछ भी तत्व नहीं है। कोई शिक्षा