पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/५१

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कर उसकी जगह एक धार्मिक, नम्र, और सहनशील मौलवी को रक्खा। यह हज़रत लड़कों से बहुत प्रेम से बोलते और कभी उनकी तरफ़ कड़ी आंख से भी न देखते। लड़के उनका यह स्वभाव देख कर ढीठ होगये। आपस में लड़ाई दंगा मचाते और लिखने की तख़तियां लड़ाया करते। जब मैं दूसरी बार फिर वहां गया तो मैंने देखा कि वही पहले वाला मौलवी बालकों को पढ़ा रहा है। पूछने पर विदित हुआ कि दूसरे मौलवी की नम्रता से उकता जाने पर लोग पहले मौलवी को मना कर लाये थे।


एक बार मैं बलख़ से कुछ यात्रियों के साथ आ रहा था। हमारे साथ एक बहुत बलवान नवयुवक था जो डींग मारता चला आता था कि मैंने यह किया और वह किया। निदान हम को कई डाकुओं ने घेर लिया। मैंने पहलवान से कहा अब क्या खड़े हो कुछ अपना पराक्रम दिखाओ। लेकिन लुटेरों को देखते ही उस मनुष्य के होश उड़ गये। मुख फीका पड़ गया। तीर कमान हाथ से छूट कर गिर पड़ा और वह थर थर कांपने लगा। जब उसकी यह दशा देखी तो अपने असबाब वहीं छोड़ कर हम लोग भाग खड़े हुए। यों किसी तरह प्राण बचे।

जिसे युद्ध का अनुभव हो वही समर में अड़ सकता है। इस के लिये बल से अधिक साहस की ज़रूरत है।