उसी अवसर के लिए लिखे गये हो। धन्य है शीराज़ की वह पवित्र भूमि जिसने सादी और हाफ़िज़ जैसे दो ऐसे अमूल्य रत्न उत्पन्न किये। भाषा और भाव की सरलता में सादी सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। फ़िरदौसी और निज़ामी बहुधा अलौकिक बातों का वर्णन करते हैं; पर सादी ने कहीं अलौकिक घटनाओं का सहारा नहीं लिया है। यहांतक कि उसकी अत्युक्तियां भी अस्वाभाविक नहीं होतीं। उन्होंने समयानुसार सभी रसों का वर्णन किया है लेकिन करुणा-रस उन में सर्वप्रधान है। दया के वर्णन में उनकी लेखनी बहुत ही कम हो गई है। सादी निमाज़ और रोज़े के पाबन्द तो थे किन्तु सेवाधर्म को उस से भी श्रेष्ठ समझते थे। उन्होंने बारम्बार सेवा पर ज़ोर दिया है। उनका दूसरा प्रिय विषय राजनीति है। बादशाहों को न्याय, धर्म, दीनपालन और क्षमा का उपदेश करने से वह कभी नहीं थकते। उनकी राजनीति पर लायलटी (राजभक्ति) का ऐसा रंग नहीं चढ़ा था कि वह खरी खरी बातों के कहने से चूक जायं। उनके राजनीति विषयक विचारों की स्वतन्त्रता पर आज भी आश्चर्य होता है। इस बीसवीं शताब्दि में भी हमारे यहां बेगार की प्रथा क़ायम है। लेकिन आज के कई सौ वर्ष पहले अपने ग्रन्थों में सादी ने कई जगह इसका विरोध किया है।
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