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पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/७४

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(७२)

दुश्मन रा न तवां हक़ीर व बेचारा शुमुर्द।
शत्रु को कभी दुर्बल न समझना चाहिये॥




आक़बत गुर्गज़ादा गुर्ग शवद।
भेड़िये का बच्चा भेड़िया ही होता है॥




दर बाग़ लाला रोयेद व दर शोरा वूम ख़स।
लाला फूल, बाग़ में उगता है, ख़स जो घास है, ऊसर में।




तवंगरी बदिलस्त न वमाल,
व बुज़ुर्गी बअक़लस्त न बसाल।

धनी होना धन पर नहीं वरन् हृदय पर निर्भर है और वृद्धता अवस्था पर नहीं वरन् बुद्धि पर निर्भर है।


सधन होन तैं होत महि, कोऊ लछिमीवान।
मन जाको धनवान है, सोई धनी महान॥