पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(७२)

हसूद राचे कुनम को ज़ेख़ुद बरंज दरस्त।

ईर्ष्यालु मनुष्य स्वयं ही ईर्ष्या-आग में जला करता है। उसे और सताना व्यर्थ है।


क़द्रे आफ़ियत कसे दानद कि वमुसीबत गिरफ़तार आयद।

दुःख भोगने से सुख के मूल्य का ज्ञात होता है।
विपति भोग भोगे गरू, जिन लोगनि बहु बार।
सम्पति के गुण जानहीं, वे ही भले प्रकार।


चु अज़वे बदर्द आवरद रोज़गार, दिगर अज़बहारा न मानद क़रार।</poem>}}

जब शरीर के किसी अंग में पीड़ा होती है तो सारा शरीर व्याकुल हो जाता है।


हर कुजा चश्मये वुवद शीरीं,
मरदुमो मुर्ग़ो मोर गिर्दायन्द।

विमल मधुर जल सों भरा, जहां जलाशय होय।
पशु पक्षी अरु नारि नर, जात जहां सब कोय॥