पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/११०

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1 यानी रूखी बात कह दी और बता दिया कि जगतकर्ता कोभी भीश्वर नहीं है । जैसा कहने में कोमी दोष नहीं, मगर जनसमाज रूखे न्यायसे नहीं चलता। असे काव्यकी जरूरत रहती ही है। अिसलि जैनोंके बुद्धिवादको भी मन्दिरोंकी, मूर्तियोंकी और असे अनेक साधनोंकी जरूरत मालूम हुी है। वैसे केवल न्यायकी दृष्टिसे अिनमेंसे कुछ भी नहीं चाहिये । २. असलमें पहले प्रश्नके अत्तरके गर्भमें तेरे दूसरे सवालका जवाब आ जाता है, जैसे में यह मानता हूँ कि तेरा दूसरा प्रश्न भी पहलेके गर्भ में है ही । 'कृपा' शब्द काव्यकी भाषा है। भक्ति ही काव्य है । मगर कान्य कोओ अनुचित या घटिया चीज या अनावश्यक वस्तु हो सो बात नहीं है। यह निहायत जरूरी चीज है। पानी दो हिस्से हाभिड्रोजन और अक हिस्सा ऑक्सिजनते बना हुआ है, यह न्यायको बात हुी। मगर पानी ीदवरकी देन है, यह कहना कान्यकी बात हो गयी। जिस काव्यको समझना जीवनका आवश्यक अंग है । पानीका न्याय समझना आवश्यक अंग नहीं है । अिस तरह यह कहना कि जो कुछ होता है वह कर्मका फल है अत्यंत न्याययुक्त है । मपर कर्मकी गति गहन है । हम देहधारी अितने ज्यादा पामर हैं कि मामूलीसे मामूली परिणामके लिअ भी जितने कर्म जिम्मेदार होते हैं, अन सबका ज्ञान हमें नहीं हो सकता । अिसलिझे, यह कहना कि मीश्वरकी कृपाके बिना कुछ नहीं होता, ठीक है और यही शुद्ध सत्य है। और किसी देहमें रहनेवाली आत्मा ओक घड़ेमें रहनेवाली हवाकी तरह कैदी है और अस घड़े की हवा जब तक अपनेको अलग समझती है, तब तक वह अपनी शक्तिका झुपयोग कर सकती । अिसी तरह शरीरमें कैद आत्मा अगर यह माने कि वह खुद कुछ करती है, तो सर्वशक्तिमान परमात्माकी शक्तिसे वंचित रहती है । अिसलिओ भी यह कहना कि जो कुछ होता है वह ओश्वर ही करता है, वास्तविक है और सत्याग्रहीको शोभा देता है । सत्यनिष्ठ आत्माको अिच्छा पुण्य होती है और अिसलिओ वह फलती ही है । अिस विचारसे जिस प्रार्थनाके श्लोक तूने अद्धृत किये हैं, वह प्रार्थना हमारी निष्ठाके हिसावसे सारी दुनियाके लिझे भी जरूर फलेगी । जगत हमसे भिन्न नहीं है, न हम जगतसे भिन्न हैं । सब अक दूसरेमें ओतप्रोत हैं और अकके कामका असर दूसरे पर हुआ करता है । यहाँ यह समझ लेना चाहिये कि विचार भी कार्य है, अिससे अंक भी विचार बेकार नहीं जाता । अिसी लिओ हमें हमेशा अच्छे विचार करनेकी आदत डालनी चाहिये । ३. अीवर निराकार है और सत्य भी निराकार है, अिसलिमे सत्य भीश्वर है, यह मैंने न तो देखा है और न घटाया है । मगर मैंने यह देखा कि मीश्वरका संपूर्ण विशेषण तो सत्य ही है, वाकीके सब विशेपण अपूर्ण हैं। 1 १०५