पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/११५

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... . धर्म नहीं समझे, यह सब अर्धसत्य है । अिन संस्थाओंके चलानेवाले हम लोग श्रद्धा रहित है, अिसलिओ दानके बारेमें लोगोंने सच्ची शिक्षा नहीं पाी। यह अक कुचक्र है। हमने लोगोंको तालीम नहीं दी, अिसलिओ अन्हें नहीं मिली; लोग अपने आप दान देना नहीं सीखें, तब तक हम अनके यहाँ भटकते रहें । जिस तरह काम कभी ठिकाने ही न लगेगा। लोग सीखेंगे नहीं और हममें श्रद्धा आयेगी नहीं। नतीजा यह होगा कि नौ दिन चले अदाभी कोस । अिसलिझे हमसे कुछ लोगोंको बड़ीसे बड़ी जोखम झुठा कर भी श्रद्धाका मार्ग लेना जरूरी है। अिसके लिअ तुम बिलकुल योग्य हो। दूसरी संस्थाओंकी तुलनामें यह संस्था पुरानी है, प्रतिष्ठा पानी हुी है, शिक्षक सभी स्वार्थी नहीं हैं, जो शिक्षा दी जाती है वह प्रेमसे दी जाती है। अिसके साक्षीके रूपमें कितने ही विद्यार्थी तैयार भी हुबे हैं। कुछ नियमित रूपसे दान देनेवाले मिल गये हैं। अिसलिओ व्यवहार बुद्धिसे जाँच करने पर भी मेरा बताया हुआ कदम अयोग्य नहीं लगता । और मेरे खयालसे शुद्ध श्रद्धा ही शुद्ध व्यवहार है । यह क्यों मान लेते हो कि तुम फीस बढ़ा दोगे और स्वावलम्बी बन जाओगे, तो धनवानोंके लडके ही आयेंगे ? कुछको तो तुम मुफ्त लेते ही होंगे। जिनका बोझा तुम धनवानों पर डालो, तुम्हारी शिक्षाकी अन्हें गरज होगी तो अितना कर वे देंगे; देना ही चाहिये । अपनी शिक्षाकी आवश्यकताके बारेमें शंका किस लिभे करते हो ? मेरा तो दृढ़ विश्वास और अनुभव है कि हमारी अच्छीसे अच्छी संस्थायें भी अिसलिमे पूरा विकास नहीं कर पातीं कि अनके आचार्योंको रुपया माँगने में अपना समय लगाना पड़ता है। संस्थाका भीतरी विकास ही आचार्यकी साधना होनी चाहिये । असके बजाय आचार्यको, अपना अमूल्य समय रुपयेके लिखे खर्च करते देखा गया है। मुझे तो असा लगता है कि जैसा करनेमें आचार्य अपना धर्म भूल गये । अन्होंने अपने धन्धेके बारेमें श्रद्धा नहीं रस्त्री । नतीजा हम देख रहे हैं । अक बार तुम सब शिक्षक मिलो और फिर जो मित्र आज तक धन देते आये हैं अनके साथ मिलो, और बादमें संकल्प करो । मिलना सलाह लेनेके लिझे नहीं, बल्कि संकल्प करनेके लिओ और असे प्रगट करनेके लिये हो । श्रद्धा किसीकी सलाहकी राह नहीं देखती, और सलाह लेने बैठोगे तो खोओगे । आज तो अितने पर ही खतम करता हूँ। फिर मेरे साथ झगड़ना हो तो शोकसे झगड़ना । तुम्हें पत्र लिखने की फुरसत होगी तो मुझे तो है ही। और बाहर हो तो यह फुरसत मिल ही नहीं सकती। अिसलि मेरे विशेष शानका और विशेष अनुभवका पूरी तरह लाभ झुठा लेना । नहीं अठाओगे, तो तुम घाटेमें रहोगे । यह कहने में कि अिस मामलेमें मैं कुशलता रखता हूँ, ११२