"कहिये, अब कोभी बाकी रहा ? जितनोंको जेलमें जाना चाहिये था, वे सब पहुँच गये न ?" अल्विनके पत्रका सूपर जिक्र आया है। असने लिखा था कि विशपने असे गिरजेमें प्रवचन करनेकी भिजाजत नहीं दी और भिस २५-४-३२ बात पर दुःख प्रगट किया था कि सनातनी ीसाीके नाते असका गिरजेमें जाना नहीं होता। अिस बारेमें बापूने असे लिखा: "I wish you will not take to heart what the Bishop has been saying. Your church is in your heart. Your pulpit is the whole earth. The blue sky is the roof of your church, And what is this Catholicism? It is surely of the heart, The formula has its use. But it is made by man. If I have any right to interpret the message of Jesus as revealed in the Gospels, I have no manner of doubt in my mind that it is in the main denied in the churches, whether Roman or English, High or Low. Lazarus has no room in those places. This does not mean that the custodians know that the Son of Sorrows has been banished from the buildings called House of God. In my opinion, this excommunication is the surest sign that the truth is in you and with you. But my testimony is worth nothing, if when you are alone with your Maker, you do not hear the Voice saying, 'Thou art on the right path'. That is the unfailing test and no other." " मैं चाहता हूँ कि विशपकी बातोंसे तुम जरा भी न घबराओ। तुम्हारा गिरजा तुम्हारे दिलमें है। सारी दुनिया तुम्हारी व्यासपीठ है । यह नीला आकाश तुम्हारे गिरजेकी छत है । और यह सनातनीपन क्या है ! सचमुच यह तो दिलकी चीज है । जिस नामका झुपयोग जरूर है | हालाँकि आखिरमें तो यह मनुष्यका रखा हुआ नाम ही है। अगर सुवार्ताओंमें दिया हुआ जीसाके सन्देशका अर्थ करनेका मुझे कुछ भी अधिकार हो, तो मेरे दिलमें जरा भी शक न रख कर मैं कहने को तैयार हूँ कि आज गिरजोंमें मिस सन्देशको नहीं माना जा रहा है, फिर भले ही यह गिरजा रोमन हो या अंग्रेजी हो, बड़ा हो या छोटा हो। लाजरसके लिओ तो अिन गिरजोंमें जगह ही नहीं है। अिसका अर्थ यह नहीं कि पुजारियोंको यह ज्ञान है कि देवस्थान कहलानेवाले अिन मकानों से करुणासागर श्रीसाको देशनिकाला दे दिया गया है.। मगर मेरा मत यह तो जरूर है कि
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