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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१४८

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- बापू कहने लगे- ओक और बहनने पूछा- आत्मा अमर है, यह तो आप मानते हैं। तब ओक स्नेहलमके बाद विधवा होने पर बिन्दी क्यों नहीं लगायी जा सकती ?" बापूने अिसका जवाब दिया--"मेरे खयालसे तो जैसे विधुर अपनी पत्नीके मरनेके बाद विधुरपनकी कोी निशानी शरीर पर नहीं रखता, वैसे ही विधवाको भी बाहरी चिह रखनेकी कोी जरूरत नहीं है। जिस बहनने आत्मा अमर होनेकी दृष्टिसे विचार किया है, वह दृष्टि तो ठीक है, पर झूची कहलायेगी । मैं तो सिर्फ न्यायकी दृष्टिसे विचार कर रहा हूँ। तब भी हृदयमेंसे जवाब निकलता है कि विधवाको अपने वैधव्यकी सतत रक्षा करनेकी अिच्छा हो, तो भी असे वाहरी निशान रखनेकी बिलकुल जरूरत नहीं है।" अिसपर मैंने कहा "मिस बेचारीको कहीं मालूम है कि आप तो सघवासे भी यह मांग करते हैं कि वह बिन्दी न लगाये और चूड़ियाँ न पहने ?" " तुम कहो तो लिम्बूं। मगर बात यह है कि हमें तो न्यायकी ही बात करनी है। जब तक सारा सघवा जगत बिन्दी लगाता और चूड़ियाँ पहनता है, तब तक विधवाके सामने यह आदर्श स्थिति कैसे रखू ? बाको समझा समझा कर यक गया, मगर असने न माना। मैं भी कभी अिस विचारका पक्का या कि विधवाओंकी शादी न होनी चाहिये और अस समय यही कहता था कि विधुरोंको भी विवाह न करना चाहिये । मगर बादमें मैंने देखा कि विधुरोंके शादी न करनेकी हालत तो कभी पैदा नहीं की जा सकेगी। अिसलि शुद्ध न्यायकी बात कहना ही अच्छा है कि विधवा पर शाश्वत वैधव्यका · जुआ नहीं रह सकता। नटराजनका पत्र आया । अन्होंने बापूके अिस सुझावका स्वागत किया कि चमत्कारोंका प्रदर्शन करना मूर्खता है : "I agree with you that exhibition of the kind you refer to, are repulsive and as they serve no useful purpose they should be discouraged by public opinion. They recall a saying of Ramakrishna Paramhansa's which I read some- where. Some one asked him if it was possible to walk on water. 'Yes' was his reply, 'but commonsense people pay a pice to the ferryman.'” आप लिखते हैं वैसे प्रयोग करना घिन अपजाता है। अनसे कोभी मतलब सिद्ध नहीं होता, अिसलिले अन्हें अत्तेजन नहीं देनेके लिअ लोकमत तैयार करना चाहिये । मैं आपके अिन विचारोंसे सहमत हूँ। अिस सवालके सिलसिलेमें विचार करते हुओ मुझे रामकृष्ण परमहंसका अेक वचन कहीं पढ़ा हुआ याद आता है। अनसे किसीने पूछा कि 'क्या पानी पर चला जा सकता १४५ म-१०