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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१६६

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उठते यही रटन लगा और हारनेका नाम न ले । भले ही सारा जन्म भिसीमें बीत जाय । यह करता रह और अिस बारेमें जरा भी शक न रख कि तुझे दिन दिन अधिक शान्ति मिलेगी।" आज 'लीडर में ७ मीके 'न्यु स्टेट्समैन' के लेखका शुद्धरण था । वह पढ़कर सुनाया। बापू कहने लगे -" अत्तम लेख है।" बादाम सवा दो रुपये पौण्डके भावके हों, तो छोदनेका निश्चय किया था। वे निकले बारद आने पोण्डके । वल्लभभाभी कहने लगे तो हमने भी विचार किया कि चलो, हम भी खायें ।" बापू बोले. आप क्या खानेवाले थे?" ." दूध घी छोड़कर खाना शुरू करना चाहिये ।" वल्लभभाी- "नहीं, बकरीका दूध घी छोड़ देंगे, बापूने भी तो यही छोड़ा है!" (6 मैंने कहा- वम्बीमें दंगा लाभग शान्त हो जानेकी खबर है- शान्त हुआ यानी शनिवारको खुन नहीं हु। मगर २०-२५ आदमी घायल २१-५-३२ तो हुझे ही हैं। डाह्याभाभी और मणिबहन आ गये । अनसे यह खबर मिली कि . . . सरकारने भी यह कहा कि कांग्रेसके पास जाओ। यानी बापूका डर सही था । आज शामको जिस दंगेसे पैदा होनेवाले अपने अपने विचार अंक दुसरेके सामने रखे । वल्लभभाी कहने लगे. ." सीधे न लड़ें और पीछेसे छुरा मारकर चले जाय, खादी पहनकर झूठा भेस बनाकर चालियोंमें घुसकर स्त्रियोंको मार जाय, उनका क्या करें ? लोगोंको हम क्या सलाह दें?" बापूने कहा- "मैंने तो अपना रास्ता बता दिया है। या तो लड़ लो या मर जाओ।" वल्लभभाभी लड़ तो कैसे लें ? अिनके जैसा तो कोभी भी नहीं करेगा ?" वापू बोले ." यह सही नहीं है। सभी करते हैं। पिछली लड़ाीमें क्या हुआ था ? यह समझो कि यह भी लहाजी ही है। ये लोग तो लड़ाभी समझकर ही अिस तरहके अत्याचार करते हैं। कानपुरमें हिन्दुओंने भी तो मुसलमानोंकी तरह ही किया था न ? और मुंजे तो साफ कहता है कि अिन लोगोंके साथ अिन्हीं की तरह पेश आना चाहिये। मैं उसे बहादुर मानता हूँ। वह तड़ाक पड़ाक साफ कह देता है । मैं कहता हूँ कि हम सुनके साथ अन्हींकी तरह नहीं लड़ सकते । क्योंकि यह हमारे स्वभावमें नहीं है। अिसलिझे हमारा छुटकारा तो मरनेमें ही है । आज हम जो अहिंसा पाल रहे हैं, वह तो व्यावहारिक अहिंसा है । और जिस अहिंसाका मुसलमानों पर असर नहीं होगा।" मैंने कहा -“ आमने सामने खड़े रहकर बड़े समूह लड़ते हों, तो यह कल्पना की जा सकती है कि अक समूहको मर जानेको कहा जाय १६३