पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१७३

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वह तो है ही नहीं । वह पारसी होने का बाहरी निशान है। असे छोड़ देना मुझे किसी तरह भी झुचित नहीं लगता । अिसके लिये जरथोस्तकी पुस्तकें ले आनेको डाह्याभाभीसे कहा है। मैंने जरथोस्तके वचन पढ़े हैं। बहुत वर्ष पहले वेंदीदादका अनुवाद पड़ा था । वह नीतिसे भरा हुआ है । बहुत पुराना धर्म होनेके कारण संभव है कि सारे पारसी ग्रंथ आज मौजूद न हों और अिसली संभव है कि जो ज्ञान अपनिषदों वगैरा से मिलता है, वह जरयोस्तके बचे हुमे साहित्यसे न मिल सके । जो मिल सकता है असे देखकर दरवारीको विचार लेना चाहिये । मगर अितना तो आज भी माना हुआ है कि जरयोस्तका आधार वेद हैं । जहाँ तक मुझे याद है वेदीदादके अनुवादकने झंद और संस्कृतके बीच बहुत साम्य बताया है । अिसलिले आज जो चीज पारसी धर्मग्रंथोंमें न पाणी जाय, अस कमीको वेदों और अपनिषदोंसे पूरा कर लेनेमें पारसी धर्म या पारसीपनको कुछ भी बट्टा नहीं लगता । असलमें तो अपने धर्म पर कायम रहकर किसी भी दूसरे धर्ममें जो विशेषता दिखे, असे ले लेनेका हमारा अधिकार है । अितना ही नहीं, औसा करना हमारा धर्म है । दूसरे धर्मोसे कुछ भी न लिया जा सके, अिसीका नाम धर्मान्धता है; और असे दरबारी और हम सब पार कर चुके हैं। " भुस्कुटेने पूछा था आप सत्यको अीश्वर मानते हैं, जगतका कोसी कर्ता नहीं मानते । फिर भी बहुत बार जिस अन्तर्नादको सुनकर काम करते हैं, वह क्या है ?” जिसका जवाब हिन्दीमें लिखते हुओ छगनलाल जोशीके पत्रमें लिखा "जगतका कोमी कर्ता नहीं है, जिसका क्या अर्थ हो सकता है ? हम कैसे कह सकते हैं कि कोसी कर्ता नहीं है ? मेरे कथनका अिसमें कुछ अनर्थ-सा प्रतीत होता है। मैंने तो कहा है कि सत्य ही ीश्वर है । अिसलिले असा मानो कि वही कर्ता है। परन्तु यहाँ कर्ताका जो अर्थ हम करते हैं औसा नहीं है। अिसलि सत्य कर्ता अकर्ता दोनों है । परन्तु यह केवल बुद्धिवाद है। जैसा जिसके हृदयमें लगे, जैसा माननेमें अिस बारेमें कोसी हानि नहीं है । क्योंकि हरओक पुरुष ीश्वरके बारेमें न संपूर्ण जानता है और न जितना जानता है वह बता सकता है । यह बात ठीक है कि कुछ भी कार्यके निर्णयके लिओ मैं अपनी बुद्धि पर विश्वास नहीं करता हूँ। जब तक हृदयमेंसे आवाज न निकले, वहाँ तक बुद्धिकी चातको रोक लेता हूँ। अिसे कोजी गृढ़ शक्ति कहे या क्या कहे वह मैं नहीं जानता । अस बारेमें मैंने कभी सोचा नहीं है, न झुमका पृथक्करण किया, करनेकी आवश्यकता भी नहीं मालूम हुी है । बुद्धिसे पर जैसी यह वस्तु है जितना मुझमें विश्वास है, और ज्ञान भी है । और मेरे लिओ कार्की , १७०