पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२१

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वल्लभभाीकी दिल्लगी दिनभर चलती ही रहती है । बापू सब चीजोंमें "सोडा' डालनेको कहते हैं, अिसलिओ वल्लभभाीको अक बड़ा मजाकका विषय मिल गया है। कुछ भी अड़चन आये तो कह झुठते हैं "सोडा डालो न!" और उसकी हास्यजनकता बतानेके लिओ वैद्यके जमालगोटेकी बात कहकर खुब हंसाया । आज बापूने अिमर्सनके खतका जवाब दिया । अिसमें साथियोंके प्रति वफ़ादारी ( loyalty to colleagues) और सत्यके प्रति वफ़ादारी (loyalty to truth) अिन दो चीज़ोंके बारेमें बापूने महत्वपूर्ण अद्गार प्रगट किये और अनकी आँखें खोलनेका प्रयत्न किया । बापूने सरकारको जो पत्र (मुलाकातके बारेमें) लिखा था, असका अत्तर आज आ गया। बापूने 'पोलिटिकल'की व्याख्या माँगी थी, १४-३-३२ और खुद जो अर्थ करते हैं असका विस्तार किया था । सरकारने सिर्फ यह लिखा कि जो 'पोलिटिक्स में कती हिस्सा न लेते हों, वे मिल सकते हैं । बापूने कहा -" फिर भी यह नहीं लिखा है कि जो जेलमें जाते हों या सविनय भंगकी लड़ाओमें भाग लेते हों वे। अिसलिले अन्तमें पोलिटिक्सका अर्थ मुझ पर ही छोड़ा दीखता है ।" मुझे भी विचार करने पर जैसा ही लगा।

आज बापका आश्रमकी डाकका दिन था। भभाीके शब्दोंमें 'होमवर्ड मेल डे' था । अिसलिझे 'लगभग ४२ खत आश्रमको और पाँच सात दूसरे लिखे। नारणदासभाीके पत्रमें अवयवोंके सदुपयोगके बारेमें -- जरा-मरणके बारेमें कुछ सहज किन्तु बहुत महत्वके विचार अनायास ही लिखें गये हैं, वे देखने लायक हैं । परसरामको प्रारब्ध-पुरुषार्थके बारेमें जो पत्र लिखा है, वह अल्लेखनीय है । तिलकनको 'विषया विनिवर्तन्ते के विषयमें जो विस्तार किया है, वह सारा यहाँ देता हूँ : In working out plans of self-restraint, attention must not for a moment be withdrawn from the fact that we are all sparks of the divine and therefore partake of its nature and since there can be no such thing as self-indulgence with divine, it must of necessity be foreign to human nature. If we get a heart-grasp of that elementary fact, we should have no difficulty in attaining self-control and that is exactly what is implied in the Gita verses we sing 44 १४