पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२३३

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मेजरके साथ 'सी' वाले भाषियोंको लिखनेकी सामग्री देनेके लिओ बड़ी बहस हुी। मेजर माना ही नहीं । वह जिस बात पर डटा ही रहा कि चूंकि असका दुरुपयोग होता है, अिसलिओ मैं किसीको भी नहीं दे सकता । बापूने कहा- " और सब जगह देते हैं।" मेजर कहने लगा. "तो वहाँ भी बन्द हो जाना चाहिये ।" वापूको बड़ा बुरा लगा । मेजरको कल जो बात कही थी, असके बारेमें डोीलको पत्र लिखवाया । आजके अखबारमें सबसे बढ़िया खबर फादर अल्विनका बयान १२-६-३२ है । कल 'टाअिम्स में अनके बारेमें गप्प आयी थी, तब भी असे किसीने माना तो था ही नहीं । और आज तो अक तरहसे अच्छा लग रहा है कि यह गप्प आयी, जिससे अल्विनको कांग्रेसके बारेमें जिस ढंगसे लिखनेका मौका मिला। नटराजनने दस्तूर मैजिस्ट्रेटको नाअिटहुड देनेके विरुद्ध अच्छा लिखा है और दोराव ताताकी अच्छी कदर की है। श्रीमती ताताके प्रति सुनका प्रेम, ठेठ आखिरी दिनोंमें सुनका जीवनचरित लिखवाना, और लेडी अबरडीनका दोनोंक प्रेमकी शाहजहाँ और मुसताजके साथ तुलना करना -यह सब बहुत बढ़िया है। हमारी पाठ्य पुस्तकोंमें बहुतसे पाठ आते हैं, मगर सर दोराब ताता जैसे और जमशेदजी ताता जैसे लोगों के पाठ क्यों नहीं आते ? < भारतीको असके पत्रका अत्तर दिया : "कितने अच्छे अक्षरोंमें लिखा हुआ तेरा पत्र मिला है ! असे पत्रोंसे मैं थकता ही नहीं। १३-६-३२ 'तुम भाभीबहन वन जैसे मजबूत और कठोर बन जाओ, सरदी गरमी बर्दाश्त कर लो, यह तो मुझे पसन्द है । मगर अिस तरहका प्रयोग तुझ पर अकदम शिमलाकी धूपमें मुझसे नहीं हो सकता। जिस तरहकी सहनशक्तिकी तालीम ढंगसे और धीरे धीरे ली जाय, तो ही सफल होती है। यह मानना बड़ी भूल है कि हमेशा नाजुक रहनेवाले समय पड़ने पर कठोर बन सकते हैं । यह कुदरतके खिलाफ जानेकी बात है। जिस तरहकी भूलके सैकड़ों अदाहरण मेरी आँखोंके सामने हैं । " साहित्य पहना मुझे अच्छा जरूर लगता है। पाठशालाके जीवन में पाठशालाकी पहामीसे ज्यादा कुछ नहीं कर सका । असके बाद अफके पीछे अक असे काम आते गये कि योड़ा ही पड़ना हो सका । जो कुछ हुआ वह मेलमें हुआ । लेकिन मैं यह नहीं समझता कि जिससे मैंने कुछ खोया है । २१०