बापू सुवह ९ बजे और शामको ६ बने रोन सोडा और नीबू पीते हैं। नीबू गरमीमें महंगे हो जाते हैं, मिलि बापूने वल्लभभाीको १४-६-३२ भिमली सुझायी। अिमलीके झाइ तो जेलमें ही बहुत हैं । वल्लमभाभीने जिस बातको हँसीमें अड़ा दिया : " भिमलीके पानीसे हट्ठियाँ गल जाती हैं, बादी हो जाती है।" बापने पूछा - जमनालालजी पीते हैं सो?" वल्लभभाी " जमनालालजीकी हड्डियों तक पहुँचनेका अिमलीके लिये रास्ता ही नहीं ।" बापू- "मगर मेक समय मैंने खुत्र अिमली खायी है। " वल्लभभाओ " अस वक्त आप पत्थर भी हजम कर सकते थे। आज वह कैसे हो सकता है ?" " तो - -
वल्लभाभी अब लिफाफे बनानेमें होशियार होते जा रहे हैं। रोज कुछ न कुछ नयी युक्ति सुशती है और कागजके अक अक टुकहे पर अनकी नजर रहती है। बापू कहने लगे "बेकार कागजों पर आपका ध्यान जितना लगा रहता है, जितना अस बिल्लीका छिपकली पर रहता है।" आज आय. जी. पी. डोअील आ गये। बापूने 'सी' वर्गवालोंको कागज और लिखनेका सामान देनेके लिझे जो पत्र लिखा था, सुसी सिलसिलेमें आये थे। जिस आदमीके विवेककी इद नहीं थी। हम सबसे हाय मिलाया। बापूसे कहने लगा ." कामको ज्यादतीके मारे ही न आ सका । आपकी की हुी माँग विलकुल वाजिब मालूम होती है और में मेजर भण्डारीसे कह दूंगा। मगर जिसके लिझे सर पर लागू होनेवाले हुक्म न माँगियेगा । यह समझमें आ सकता है कि योग्य मनुष्यों को यह सामान दिया जाना चाहिये।" वल्लभभाभीसे कहने लगा "आपकी लड़कीने पत्र लिखा है, असके जवाब में बेलगाँवसे अच्छी अच्छी बहनोंको यहाँ बुला लेनेका अिन्तजाम कर रहा हूँ। असे लिख दीजिये कि चिन्ता न करे । " आदमी बड़ा मीठा मालूम हुआ। जेलर पूछने लगा " पहली ही बार मिले हैं क्या ?" मैंने कहा- "हाँ, मजेका आदमी लगता है।" जेलर ." आपको अनुभव नहीं है । बोलनेमें ही मीठा है। वापृका तो अक भी काम असने नहीं टाला, बल्कि यह कह सकते हैं कि बहुत से तो बड़ी तेजीके साथ किये हैं। मगर कहाँ हमारा तजरवा और कहाँ असके मातहतोंका ? डोीलने अक बात कही : मेरा यह सिद्धान्त है कि जिसका विचार न किया जाय कि कैदी बाहर क्या करके आया है, नहीं तो हम सज्जनता रख ही नहीं सकते । मगर क्या यह बात ठीक है ? कोभी आदमी झगड़ालू स्वभावका हो, हत्यायें करके ही आया हो, तो भी असे दूसरों के साथ ही रख दिया २१३