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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२४

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आज वाप्ने मेजरसे हरिदासका हालचाल पूछा। पूछने पर संतोपजनक अत्तर नहीं मिला । अिसलि बापूने कहा - "अन्हें मुझे १५-३-३२ दो शब्द लिखने दीजिये । वे मेरे अक्षर परेंगे, तो भी अनके जीमें जी आ जायगा 1" मेजरने कहा यह तो नहीं हो सकता ।" बापने कहा " मेजर मार्टिनने जिस तरहकी मिजाजत दो थी। " मेजर बोले यह ज्यादा ठीक होगा कि आपका सन्देश में दे बापने कहा " जिससे काम तो चल जायगा, मगर मैं लिखू तो ज्यादा ठीक रहेगा.।" मेजरने कहा "आपकी अिस डाक से आपके अक्षर बता तो!" बापूने हरिदाससे मिलनेकी अिजाज़त शुक्रवार तक देनेके लिये मार्टिनको पत्र लिखा । >>

मगर अिस वक्त हरिदासकी ही बात संतापजनक हो सो बात नहीं । जैसी और भी बहुत खबरें मिली । काका साह्य, नरहरि और प्रभुदासको वेलगाँव जेलमें ले गये हैं । वहाँ काकाको चरखेके लिअ सात दिन अपवास करना पड़ा। प्रभुदासको अस्पतालमें, नरहरिको दूसरेके साथ और काकाको अलग रखा है। प्रभुदासको दो आदमी बाहोंमें झुठाकर लाये और जंगलेमेंसे बात करनी पड़ी । मैं तो भीतर ही भीतर अवलने लगा । कहाँ अिन सबकी योग्यता और कहाँ मेरी ! अिनमेंसे किसीको वापके पास रखा गया होता, तो कितना अच्छा होता! लेकिन कौन जाने अिन लोगोंको ज्यादा तपाकर अिनकी योग्यता और भी ज्यादा बढ़ानी होगी, और मुझसे भगवानको ज्यादा आत्मनिरीक्षण कराना होगा और मुझे ज्यादा शर्माना होगा! जेलमें आया तब मन ही मन यह चाहता था कि बाके पास जा सकें तो अच्छा हो । योग्यताका भान कहता था कि नहीं जा सकता, और अब आत्मा यह गवाही देती है कि मेरे बजाय ज्यादा योग्य अिन सबमेंसे कोसी होता तो अच्छा होता । 'अकल कला खेलत नर शानी'! बापूने जब देखा कि जिन लोगोंका हाल सुनकर मुझे दुःख होता है तो कहने लगे. "नहीं, जो होता है सो ठीक होता है । हम क्या जेल भोगते हैं ? यह अच्छी बात है कि जेलका सच्चा अनुभव अिन लोगोंको होगा {" मैंने कहा- "अक दृष्टिसे तो यह अच्छा ही है ।.आज जमनालालजीको वीसापुरमें देखकर सबका सेर सेर खुन बड़ा होगा । अिसी तरह काका और नरहरिके साथका कमियोंको अभिमान हुआ होगा ।" वापने फिर कहा "अिसलिओ जो होता है सो अच्छा है । यह कहा जा सकता है कि मैंने तो यहाँ जेल काटी ही नहीं ।" मैंने कहा यह कहा जा सकता है कि सन् १२२में कुछ कुछ