पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२५

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." झूठी 66 काटी थी।" बापूने कहा " नहीं, नहीं। असी कोसी बात नहीं थी। मैंने कहा "दूध भी तो दो बार गरम नहीं करने देते थे न?" बापूने कहा बात है ! यह सब तुमने अतिशयोक्ति सुनी है । मैं जो माँगता था वही मिलता था । अंगीठी माँगें तो अँगीठी, रोटी माँयूँ तो रोटी और घी मायूँ तो घी । यह बात सच है कि कागज पत्र बिलकुल नहीं लिखे और मुलाकात नहीं ली थी। मगर मेरा तो आज भी यही हाल है न!" फिर कहने लगे---"असली जेल तो दक्षिण अफ्रीकामें काटी। गालियाँ खाीं, मार खाी और सख्त मज़दूरी की। ।" मार खामी?" हाँ । कर्मचारियोंकी नहीं मगर कैदियोंकी । हमको जूलुओंके साथ रखा गया था । पाखानेकी असी व्यवस्था थी कि नीचे डन्या और सूपर अक आड़ा लकड़ा। अस पर अकइँ बैठना, न को पकड़ने का साधन, न कोमी अकान्त । मैं जैसे तैसे दोनों हाथोंसे अस लकड़े को पकड़कर बैठा ही था कि अक जूलू कैदी आया और मुझे थप्पड़ मारकर धकेल दिया। मैं दीवारके साथ टकराया, सिरमें लगी होती तो खुब खून निकलता । अस आदमीको औसा लगा कि असके बैठनेकी जगह पर पैर रखकर मैं असे बिगाड़ता हूँ। अस दिन पाखाना जानेकी तो बात ही कहाँ रही! दूसरे दिन सुपरिष्टेण्डेण्टसे सारा किस्सा बयान किया और कहा 'हमें आप जैसी ही सुविधा देगे, तो जिस तरहके किस्से होते ही रहेंगे । जिसमें मैं झुस बेचारेको दोष नहीं देता, मगर हमारे लिअ हिन्दुस्तानी ढंगकी दूसरी व्यवस्था होनी चाहिये। हमें पानी काममें लेना चाहिये और खास तरहसे बैठना चाहिये ।' बस दूसरे दिनसे अलग व्यवस्था हो गयी । यह तो मैं था अिसलि । नहीं तो कितने ही दिन मुसीवत अठानी पड़ती । और हमें खाना कैसा मिलता था? मीली पेप यानी मक्कीकी कांजी - यह तीन दिन तक रोज तीन बार; दो दिन भात और वह अकेला ही साग दालके विना ----असमें सिर्फ नमक और घी; वह घी भी प्रिटोरियामें तो नहीं मिला; और दो दिन सेम और वह भी सिर्फ मुबले हुओ ! जिसके बारेमें झगड़ा किया तब हमें खुद अपनी रसोभी बना लेनेकी अिजाज़त मिली । अिजाजत मिली तो सिर्फ पकानेकी ।, चीजें तो वही रहीं। थंबी नायट्ट पकाता था और सुन्दर भात बनाकर देता था । वे सब नाचनाच कर खाते ये । मुझे जिस कोठरीमें रहना था, वह मुश्किलसे तीनचार फुट चौड़ी और छह फुट लंबी होगी, और तिजोरी जैसी बंद । जिसमें अजालेका नाम नहीं या और हवाफे लिटे सिर्फ अपर खिदकी थी। ये अकान्त कोठरियों - अधेरी कोठरियाँ कहलाती थीं । मेरे आसपास दुनियाभरके निकम्मे कैदी थे । अक ३० बार सज़ा पाया हुआ था, अक बलात्कारका गुनहगार था और सब बूलू थे । मुझे कैदियोंके कुर्तीकी जेबें काटकर देनी होती थीं और वे लोग १८