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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२४४

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- A ¢ भिसमें मुकाबलेकी गुंजायश नहीं हो सकती। मेरे खयालसे निराकार ज्यादा अच्छा रहेगा । शंकर, रामानुज सम्बन्धी पृथक्करण मुझे ठीक नहीं लगा। परिस्थितिसे अनुभवका असर ज्यादा होता है। सत्यके पुजारी पर परिस्थितिका प्रभाव नहीं पड़ना चाहिये। असे परिस्थितिको चीरकर निकल जाना चाहिये । हम देखते हैं कि परिस्थितिकी बुनियाद पर बनायी हुी राय अक्सर गलत निकलती है । मशहूर मिसाल आत्मा और शरीरकी है। आत्माका अभी शरीरके साथ निकट सम्बन्ध है, मिसलिमे शरीरसे अलग आत्मा तुरन्त नहीं दिखायी देती। जिस परिस्थितिको चीरकर जिसने पहला वचन कहा .' यह नहीं', असकी शक्तिको अभी तक कोी पहुँच ही नहीं पाया । जैसे की अदाहरण तुम्हें सहज ही मिल जायेंगे। तुकाराम वगैरा सन्तोंके वचनोंका शब्दार्थ करना बिलकुल ठीक नहीं है। अनका अक वचन अभी पहनेमें आया है, वह तुम्हारे लिये अद्भुत करता हूँ : मातीचा पशुपति' वाला अभंग है । जिससे मैं यह सार निकालता हूँ कि असे साधु-सन्तोंकी भापाके पीछे जो कल्पना रही है वह हमें देखनी चाहिये । वे साकार भगवानका चित्र ग्वीचते हो तो भी निराकारको भजते होंगे। हम मामूली आदमी असा नहीं कर सकते, विसलिो सुनका भेद समझ कर न चलेंगे तो मर जायेंगे।" भिसी पत्रमें दूसरे अद्गार ये घे जिसे अपने काममें तन्मयता है, असे बोझा या थकावट महसूस नहीं होती। जिसे रस नहीं झुसे थोड़ा भी ज्यादा लगता है। जैसे कैदीको अक दिन भी अक साल लगता है, वैसे भोगीको अक वर्ष अक दिन लगता है । पहले जब युरोपका संगीत सुनता था तो अरुचि होती थी। अभी अभी भुसे कुछ समझने लगा हूँ और रस आने लगा है।" परशरामने ज्यादासे ज्यादा कामकी हदका सवाल पूछा था । असे बापूका दिया हुआ जवाब और ये सुपरवाले अद्गार नीचेके अद्गारों के साथ तुलना करने लायक हैं: The man who loves God does not measure his work by the eight hour system. He works at all hours and is never off duty. As he has opportunity he does good. Everywhere, at all times, and in all places, he finds opportunity to work for God. He carries fragrance with him wherever he- goes. "जो आदमी भीश्वरको चाहता वह रोज आठ घण्टेके हिसाबसे अपना काम नहीं मापता । वह हरदम काम करता ही रहता है । असे छुट्टी होती ही नहीं । जब मौका मिलता है वह भलामी करता रहता है। असे सदा और 66 11 "