पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२४६

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कैदी तो खुद गेहूँ छोड़कर मक्की माँग ले और औसा करके दूसरोंकी भी लाज रख ले। मगर ये तो मेरे विचार हुसे। अिन पर जिस जगहसे मैं हरगिज आमह नहीं कर सकता । सब अपने अपने अन्तनांद पर चलें।" अिस सप्ताहके अभी बहुतसे पत्रोंका जिक्र करना बाकी है। प्रार्थना और ध्यानके विषयोंकी चर्चा तो समय समय पर होती ही रहती १८-६-३२ है । भाशूको ध्यानके बारेमें तफसीलवार हिदायतें दी: कल्पनाका चित्र कुछ भी खींचा हो और सुसका ध्यान किया हो, तो जिसमें मैं दोष नहीं देखता । लेकिन गीता माताके ध्यानसे सन्तोष होता हो तो और क्या चाहिये ? गीताका ध्यान दो तरहसे हो सकता है : अक तो असे माताके रूपमें माना है। अिसलिये सामने माताकी तसवीरकी जरूरत रहती हो तो या तो अपनी माँमें ही (यदि वह मर गी हो तो) कामधेनुका आरोपण करके गीताके रूपमें मानकर असका ध्यान करना चाहिये । या कोी भी काल्पनिक चित्र मनमें खींच लिया जाय । असे गोमाताका रूप दिया हो तो भी काम चल सकता है। दूसरी तरह हो सके तो अिसे मैं ज्यादा अच्छा समझता हूँ। हम हमेशा जो अन्याय बोलते हों, असमेंसे या किसी भी अध्यायके किसी भी श्लोक या किसी भी शब्दका ध्यान धरना ही असका चिन्तवन करना है । गीतामें जितने शब्द हैं अतने ही असके आभूषण हैं और प्रियजनोंके आभूषणोंका ध्यान करना भी अन्हींका ध्यान धरनेके बराबर है । यही बात गीताकी है । लेकिन जिसके सिवा किसीको और कोमी ढंग मिल जाय, तो भले ही वह अस ढंगसे ध्यान धरे । जितने दिमाग अतनी ही विविधता होती है । कोजी दो व्यक्ति अक ही तरीकेसे अक ही चीजका ध्यान नहीं करते । दोनोंक वर्णन और कल्पनामें कुछ न कुछ फर्क तो रहेगा ही। "छठे अध्यायके अनुसार जरा-सी भी की हुी साधना बेकार नहीं जाती। और जहाँसे रह गयी हो वहाँसे दूसरे जन्ममें आगे चलती है। अिसी तरह जिसमें कल्याणमार्गकी तरफ मुड़नेकी मिच्छा तो जरूर हो मगर अमल करनेकी शक्ति न हो, असे भैसा मौका जरूर मिलेगा जिससे दूसरे जन्ममें असकी यह अिच्छा दृढ़ हो । अिस बारेमें भी मेरे मनमें कोी शंका नहीं है। मगर जिसका यह अर्थ न किया जाय कि तब तो हम जिस जन्ममें शिथिल रहे, तो भी काम चलेगा । औसी लिच्छा अिच्छा नहीं है, या वह बौद्धिक है, मगर हार्दिक नहीं है। चौद्धिक अिच्छाके लिो कोभी स्थान ही नहीं है। वह मरनेके बाद नहीं रहती । पर जो अिच्छा दिलमें पैठ जाती है उसके पीछे प्रयत्न तो होना ही चाहिये । मगर की कारणोंसे और शरीरकी कमजोरीसे संभव है कि यह २२३