पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२४८

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जसे छापनेकी कलासे भयंकर परिणाम निकले, अिसलिओ वह कला अनिष्ट सावित नहीं होती । वगैरा वगैरा । बापूने शुन्हें लिखा ." मैंने कभी नहीं सोचा था कि तुम नाटक लिखोगे । तुम्हारे विचार आजकलके सुधारोंकी तरफ खूब शुक रहे हैं। में यह जरूर मानता हूँ कि खास मर्यादाके भीतर तलाक होनी चाहिये, मगर अिसका प्रचार करनेको जी कभी नहीं चाहता । आम तौर पर तो हम अपनी वृत्तियोंकि जितने गुलाम होते हैं कि मनकी जो हालत आज है वह कल भी रहेगी, यह निश्चित नहीं कहा जा सकता । अिसलिले यही ठीक मालूम होता है कि अपनी अिच्छासे किये हुआ विवाद बहुत प्रबल कारण न हों तब तक टूटने नहीं चाहिये । अछूतपनके सवाल पर मैंने दाको तलाक दे दी होती, तो आज जो सुन्दर स्थिति मौजूद है वह हरगिज न होती! या न जाने कहाँ पड़ी होती ! और यह कौन कह सकता है कि मैं कैसी शादी कर बैठता ? मगर विरासतमें तो यह मिला या कि तलाक दी ही नहीं जा सकती; अिसलिझे वह विषम समय बीत गया और अब तो असकी याद ही बाकी रह गयी है । अिमलिझे मुझे आशा है कि तुम्हारी पुस्तकमें जब अिच्छा हो तभी अक दूसरेसे पिण्ड छुड़ा लेनेकी बिना टिकटकी मंजूरी नहीं दी होगी। “विषयभोगकी जब अिच्छा हो तभी असे पूरी करना मनुष्यका धर्म हो, तब तो संतति-नियमनके कृत्रिम अपायोंकी जरूरत मैं समझ सकता हूँ । लेकिन सन्तानकी मिच्छाके बिना विषयभोग पापकी जड़ मानी जाय और मेरे खयालसे मानना चाहिये, तो बनावटी तरीकोंसे औलादका होना रोकना पाप पर ब्याज चढ़ाने जैसा है । कुदरतका कायदा तो है ही कि जैसा करोगे वैसा भरोगे । मनुष्य विषय करे तो भले ही सन्तानका बोझा अठाये । यहाँ यह सवाल नहीं है कि स्त्री क्यों झुठाये, क्योंकि हम स्त्रीको पूरी तरह स्वतंत्र मानते हैं। अभी जो बनावटी अपाय पश्चिममें भिस्तेमाल हो रहे हैं, झुनका यह नतीजा तो निकल ही रहा है कि विवाहकी पवित्रता मिट गयी है और जिसे जब पसन्द हो तब छूटके साथ भोग भोग लेता है । जिस चीजके प्रचारमें अभी कोजी वर्षों तो बीते नहीं हैं, फिर भी आज तक जो पवित्र बन्धन माने जाते रहे, वे अब दृट रहे हैं। आजकल पश्चिममें अच्छे गिने जानेवाले विचारक यह मानने लगे हैं कि विवाह अक वहम है । और सगे भाी-बहन भी अकदूसरेके प्रति विकारवश हो जायें और विकारको सन्तुष्ट कर लें तो जिसमें कोसी बुराी नहीं, बल्कि अचित ही है । भिन सब विचारोंको मैं अफ सिरेसे दूसरे सिरे जानेवाली ज्यादती नहीं समझता । मगर सन्तति-निग्रहकी जहमें जो विचारसरणी है, असका यह सीधा और सहज परिणाम है । और जैसा हो भी सकता है कि हमने २२५