पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२५०

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बापू कहने लगे . मुझसे पूरा कारणके विना वगैर साथीके और बहुत ही खराब जगह गोरखपुर में है । वह बुखारमें पड़ा है । असे या तो देहरादून बदल दीजिये या मेरे पास यहाँ भेज दीजिये।" आज सवेरे प्रार्थनामें ११ वा अध्याय था। प्रार्थना पूरी होनेके बाद "मि० वेकर जब मुझे वेलिंग्टन कन्वेन्शनमें १९-६-३२ ीसाी बनानेको ले गये थे वह दिन याद आता है । वे हमेशा मेरे साथ चर्चा करते थे। मैं अन्हें कहता कि आप मुझमें श्रद्धा जाग्रत कीजिये । जो भी अच्छा असर आप मुझ पर डालना चाहते हों, वह ढालने देनेके लिओ में तैयार हूँ। अिसलि अन्होंने कहा कि वेलिंग्टन कन्वेन्शनमें चलो । का समर्थ लोग आयेंगे । आप अनसे मिलेंगे तो आपको विश्वास हुझे बिना रहेगा ही नहीं । सारे डन्वेमें गोरे बैठे थे और मैं अकेला अपरके बैंक पर दवा हुआ बैठा था। वे लोग कहने लगे, देखिये हिक्स नदी आयी, भव्य प्रदेश है, देखिये, सूर्योदयके दर्शन तो कीजिये । मगर मैं अतरता ही न था । मैं तो ११ वें अध्यायका पाठ कर रहा था। करने क्या पढ़ रहे हैं ? मैंने कहा ----- 'भगवद्गीता' । अन्हें लगा होगा कि कैसा मूर्ख है कि याअिबल नहीं पड़ता । मगर क्या करते ? अन्हें मुझ पर जबरदस्ती तो करनी न थी। कन्वेन्शनमें मेरे लिो विशेष प्रार्थना भी हुभी । मगर मैं कोराका कोरा ही लोटा ।" कपड़ेके बेपारीकी दुकान पर नौकरी करनेवाले अक बेचारेने पूछा "हमारे धन्धेमें झूठके बिना काम नहीं चलता, क्या किया जाय ? दूसरा धन्धा सूझता नहीं।" असे लिखा "किसी भी हालतमें रहकर जो सत्यका आचरण कर सकता है, वही सत्यार्थी माना जायगा । व्यापारमें किसीको झुठ बोलनेकी मजमूरी नहीं है और न नोकरीमें । जहाँ मजदुरी दीखे वहाँ नहीं जाना चाहिये, फिर भले भूखों मर जाय। नानाभाभी मशरूवालाको लिखा "सुशीला और सीताके वहाँ रह जानेके समाचारसे मैं खुश हो रहा था, यह मानकर कि वहाँ वे ज्यादा तन्दुरुस्त रहेंगी। कौन जानता है किस बातसे खुश होवें और किस पर रोयें ? दोनों ही छोड़ दें !" विलायतमें हमें मदद देनेवाली अनेक स्त्रियोंमें लॉरी सोयर भी थी। असे अक बार नासूर हुआ, फिर क्षय हो गया । मगर उसके जैसी आनंदी और तेजस्वी लड़कियाँ मैंने थोड़ी ही देखी हैं होरेसने लिखा कि डॉक्टरोंने राय दी है कि वह थोड़े दिनकी मेहमान है, भिसलिझे असे पत्र लिखें । वाने असे तुरंत पत्र लिखा: २२७