पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२६४

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हमारा परताव सीधा होगा, तो वह अन्तमें ठिकाने आ जायगा। इरिलाल जैसा है वैसा बननेमें में अपना हाथ कम नहीं मानता । असका बीज बोया, तब में मूब दशामें या । जब असका पालन हुआ, वह समय श्रृंगारका कहा जा सकता है । मैं शराबका नशा नहीं करता था। यह कमी हरिलालने पूरी कर दी। मैं अक ही स्त्रीके साथ खेल खेलता था, तो हरिलाल अनेकों के साथ खेलता है। फर्क सिर्फ मात्राका है, प्रकारका नहीं । अिसलि मुझे प्रायश्चित्त करना चाहिये । प्रायश्चित्तका अर्थ है आत्मशुद्धि । वह बीरबहूटीकी गतिसे हो रही है ।" और नारणदासका चित्र-" यहाँ बैठे बैठे आश्रममें फेरबदल कराया करता हूँ । नारणदासकी अनन्य श्रद्धा, असकी पवित्रता, दृढ़ता, असका अद्यम और कार्यदक्षता सबका लाभ ले रहा हूँ।"

अक प्रसिद्ध महिलाने विधवा होकर अक प्रसिद्ध सज्जनसे शादी की यी । अस सज्जनके मरने पर क्या वह फिर विवाह करेगी? यह मैंने सहज ही पूछा । वल्लभभाभी कहने लगे अब अिस घोडेको कोन घमें चौधेगा? असे तो सभी जानते हैं। और असकी अमर भी तो हो गयी। अब वह शादी करनेकी मिच्छा भी नहीं करेगी।" बापू-" मुझे याद है अक ६४ सालको औरतने व्याह किया था। मिसेज ओ० असका नाम था। में असे जानता या। असने शादी करनेके बाद मुझे लिखा था कि 'अब मैं मिसेज ओ० नहीं हूँ, परन्तु मिसेज पी० हूँ। आप हमारे यहाँ आयेगे, तब मेरे पतिसे पहचान होगी।' अित औरतने सिर्फ ओक साथी बनानेके लिखे शादी की थी।" मैंने कहा "गेटेने ७३ वर्षकी भुम्रमें अक १८ सालकी लड़कीसे ब्याह करनेकी भिच्छा प्रगट की थी। असके माँ बापको चोट पहुंची और अन्होंने अिनकार कर दिया। " वल्लभभाभी --"गेटे या अिसलिओ चोट ही पहुंची। मैं होश्रू तो असे गरम लोहेके दाग लगा । और असे कहूँ कि तुम्हारी अकल मारी गयी है और वह दाग लगानेसे ही ठिकाने आयेगी।"

प्रेमाचहनके पनमें जिस बार महत्वके सवालोंकी चर्चा थी । अन्हें वापूने बहुत लम्बा खत लिखा: "मछलीके मामलेमें तुम्हारे लि कोभी अपवाद नहीं किया है । कॉड- लिवर ऑअिलकी मनाही है, मगर आश्रममें असे चलने दिया है। मांस मच्छीकी मांस मच्छीके रूपमें आभमके लिओ मर्यादा रखी है। मगर व्यक्तिके लिसे नहीं रखी । रखी भी नहीं जा सकती । अिसी लिओ भिमाम साहब खा २४१