पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२६५

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, सकते थे । मान लो तुम्हारी जगह नारणदास हो । असने तो जन्म भर मांस वगैरा खाया नहीं है । मगर असे भयंकर बीमारी हो जाय और असकी मांस खाकर जीनेकी अिच्छा हो जाय, तो अवश्य ही मैं असे नहीं रोकँगा। मेरे विचार वह आज जानता है, मगर मरनेका समय कुछ दूसरी ही चीज है । मरते वक्त अिच्छा हो जाय, तो असमें रुकावट न डालना मेरा धर्म है । जिससे अल्टे, कोभी बच्चा हो और असके लिओ मुझे निश्चय करना हो, तो असे मरने दूंगा मगर मांस नहीं दूंगा । तुम्हें मालूम है कि बाके साथ असी ही बीती थी ? बहुत करके यह किस्सा 'आत्मकथा 'में है । न जानती हो और वहाँ भी कोी न जानता हो, तो पूछ लेना । मैं लिख भेजूंगा। बाके और मेरे लिमे वह पुण्य प्रसंग था । अब समझमें आया ? मैं तुमसे मछली खानेका आग्रह नहीं करूँगा। असके बिना तुम्हारी मौत होती हो और तुम मरनेको तैयार हो, तो मैं मरने देनेको तैयार हूँ। मछली खाकर शायद जी जाओगी, तो भी मरनेके ही लिओ न ? मगर यह धर्म तो असका है, जो असे माने और पाले। यह धर्म दूधके बारेमें मैं अपने पर ही कहाँ लागू करता हूँ ? हाँ, मुझे प्राणी- मात्रके दुधके त्यागका धर्म दीपककी तरह साफ दीखता है । मगर अिस तरहके धर्म दूसरोंसे पालन करानेके नहीं होते, खुद ही पालन करनेके होते हैं ।

"स्त्री-पुरुषके बारेमें तुमने ठीक पूछा है । "जिस जिस बारेमें बच्चोंको कुतुहल पैदा हो और असकी हमें जानकारी हो, तो वह अन्हें बतानी चाहिये; जानकारी न हो, तो अज्ञान मंजूर करना चाहिये । न बताने लायक बात हो, तो रोक देना चाहिये । और दूसरोंसे पूछनेके लिझे भी मना कर देना चाहिये । झुनकी बात कभी अड़ा नहीं देनी चाहिये । हम मानते हैं अससे बच्चे ज्यादा जानते हैं । और वे न जानते हों झुस विषयको ज्ञान हम अन्हें न देंगे, तो वे अनुचित रूपमें लेना सीख जायेंगे । अितने पर भी जो ज्ञान देने लायक न हो, असे यह जोखम अठाकर भी हमें नहीं देना चाहिये । न देने लायक थोड़ा ही होता है। वीभत्स क्रियाका ज्ञान वे चाहें तो हरगिज न दें, फिर भले हमारी मनाहीके बावजूद वे टेले रास्तेसे प्राप्त कर लें। " पक्षियोंमें होनेवाली क्रिया बच्चोंने देखी और असे जाननेकी अिच्छा हुी हो, तो मैं जरूर सुनका सन्तोष करूँ और अससे ब्रह्मचर्यका पाठ पढ़ा । पक्षी, पशु और मनुष्यके बीचका फर्क बता । जो स्त्री पुरुष असा ही आचरण करते हैं, वे अिन्सानकी शकल पाकर भी पशुपक्षी-जैसे ही हैं । अिसमें निन्दाकी बात नहीं, असली हालतकी बात है। हैवानियतसे निकलनेके लिओ ही तो हमें अिन्सानकी शकल और अकल मिली है। २४२