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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२६६

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" मासिक धर्मका पूरा शान झुम्रको पहुँची हुी लड़कीको देना चाहिये । झुससे छोटी लड़की अगर जानती हो और पूछे, तो असे भी जितना वह समझ सके अतना समझाना चाहिये । "हम कितनी ही कोशिश करें, तो भी लड़के और लड़कियाँ अन्त तक निर्दोष नहीं रह सकते । यह जानकर मुन सबको अक खास अम्रमें यह ज्ञान देना ही अच्छा है । अिस ज्ञानको पानेवाले ग्राह्यचर्यका पालन न कर सके, तो भिस तरहका कमजोर ब्रह्मचर्य हमारे किसी कामका नहीं है । अिस शानके पानेपर ब्रह्मचर्य ज्यादा सबल होना चाहिये । खुद मेरे साथ तो असा ही हुआ है । "ज्ञान देने और लेनेमें बहुत फर्क है । अक आदमी अपने विकारोंको बहानेके लिमे ज्ञान प्राप्त करता है, दूसरेको वह अनायास ही मिल जाता है। तीसरा विकारोंको मिटानेके लिओ और मरोंकी मदद करनेके लिओ वह ज्ञान प्राप्त करता है। " अिस शानके देनेकी योग्यता रखनेवाला ही असे दे सकता है । तुममें यह जानकारी होनी चाहिये । आत्मविश्वास होना चाहिये कि तुम्हारे ज्ञान देनेसे लड़कियोंमें विकार हरगिज पैदा नहीं होगा । तुम्हें यह भान होना चाहिये कि तुम विकारोंको मिटानेके लिअ यह शान दे रही हो। अगर तुममें विकार पैदा होनेकी सम्भावना हो, तो तुम्हें देख लेना चाहिये कि यह ज्ञान देते समय तुममें विकार पैदा न हों। "स्त्री-पुरुषके पतिपत्नीके सांसारिक जीवनकी जहमें भोग है। हिन्दूधर्मने असमें त्याग पैदा करने की कोशिश की है । या यों कहें कि सब धर्मोंने की है। पति ब्रह्मा-विष्णु-महेश है तो पत्नी भी वही है । पत्नी दासी नहीं, बराबरके हकोंवाली मित्र है, सहचारिणी है। दोनों अक दूसरेके गुरु हैं । " लड़कीका हिस्सा लड़केके बराबर होना चाहिये । "जो धन पति कमाता है असमें पतिपत्नी दोनों बराबरके हकदार हैं । पति पत्नीकी मददसे ही कमाता है । फिर भले पत्नी रसोजी ही क्यों न बनाती हो । वह गुलाम नहीं, साझीदारिन है । "जिम पत्नीके साथ पति अन्यायका बरताव करता हो, असे अससे अलग रहने का अधिकार है। "बच्चों पर दोनोंका बराबरका हक है। यदि पत्नी नालायक हो, तो बड़े होने पर असका सुन पर हक नहीं रह जायगा । यही बात पतिके बारेमें लागू होती है। "थोड़ेमें स्त्री-पुरुषके बीचमें जो भेद कुदरतने बना दिये हैं और जो खाली आँखों दिखाभी दे सकते हैं, अनके सिवा और कोमी भेद मुझे मंजूर नहीं हैं । अब मुझे जैसा नहीं लगता कि जिस विषयमें तुम्हारा अक भी सवाल बाकी रहा हो । २४३