सुरारिष्टेण्डेण्ट "मुझे पता नहीं।" वल्लभभाओ "असे क्या हुआ था? सुपरिटेण्डेण्ट. “पालिया । दो ही दिन अस्पतालमें रहा और मर असने जिस तरह कहा मानी कुछ हुआ ही न हो और हमने सुन लिया !! गया।" ( . -- - मेजरसे यापूने पूछा "भैसा कानून है कि स्वास्थ्यके विषयमें समाचार नहीं लिखे जा सकते !" मेजरने कहा- 'हाँ, आप जैसोंकि २४-६-३२ बारेमें तो लोग कुछ भी मान कर चिन्ता करने लगते हैं। आपकी तबीयतका हाल सुनकर श्रीमती ठाकरसी पूछने आयी थीं । आपको दस्त लग गये, यह खबर जाहिर हो जाय तो ढेरों मनुष्य पूछताछ करने आ !" वल्लमभाभी-" आर्डिनेन्स निकलवा दीजिये कि गांधीके बारेमें किमीने खबर नहीं पूछना !" बापू - "नहीं, मगर में जानना चाहता हूं कि असा नियम है या हमारे ही लिओ बना रहे हैं ? मेरे लिखे हो तो मैं समझ सकता हूँ। लेक्नि नियम ही हो तो मुझे असके खिलाफ लड़ना पड़ेगा" मेजर - “नियम तो है ही। मगर लड़नेकी बहुत बातें हैं। अिसीके विरुद्ध क्या लड़ेंगे !' बापू " असी छोटी छोटी चीजे तो बहुत हैं। और मेरे खबर देनेसे तो अल्टे झूठी खबरें फैलनी बन्द हो जायेंगी ।" मेजर . हम सच्ची खबर देते हैं । कोमी आदमी ज्यादा बीमार हो जाय, तो तार दे देते हैं।" जेलर "जो लड़का मर गया, असके बारेमें टेलिफोन किया था। या " यानी गम्भीर बीमारी हो जाय तब तक आप ठहरे रहते हैं 1" वल्लभभाभी - जैसा ही होगा कि जब मर जानेका डर पैदा हो जाय, तभी खबर दी जाय।" मेजर चिढ़ गया। बापूसे मैंने कहा " अस लड़केकी मौत के बारेमें अिसने जो लापरवाही दिखाओ अससे मुझे बड़ी चिक हुी है ।" बापू - " नोकरीमें मनुष्य असे ही बन जाते हैं।" मैं - " हमारे यहाँ . , .नंगा आदमी था, मगर किसीकी बीमारीकी बात हो तो असे चिन्ता रहती थी। दुःख भी होता था । रोज असका जिक्र करता और खवर भी पहुँचा देता था ।" वापू - "वह आदमी तो शराब पीता था न ? शगव पीनेवालेकी भावनायें असी ही नाजुक होती " आश्चर्य है |" वल्लभभाभी " देखना, कहीं भावनाको तेज बनानेके लिअ शराब पीना न सीख वापू कहने लगे- टॉलस्टॉयने अस आदमीको जब तक शराब पिलायी, तब तक तो हत्या करने की असकी हिम्मत नहीं होती थी। जब असने तम्बाकू पी, तप असकी भावना भोंटी होने लगी। बुद्धिको धुआँ लगा कि फिर मनुष्य जो चाहे वह कर बैठता है।" । २४५ 1 33
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