पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२७०

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- " 1 - व्यवहारमें असा तो होता ही रहता है ।" टॉमस - "हो सकता है, मगर हमें तो असी खबरें फैलनेसे रोकनी चाहिये ।" बापू. आप चाहें तो मैं असा कर दूंगा कि उसकी नकल साथ साथ आपको भी मिल जाय । मगर काटछाँट नहीं होने दूंगा । आपको तो आपके विरोधियोंकी बात सच हो, तो सुनको धन्यवाद देना चाहिये ।" टॉमस - "मगर सभी सच्चे नहीं होते।" बापू- "मगर मीरा तो हमारे सच्चे आदमियों की पहली पंक्तिमें है। वह जानबूझकर जरा भी अठ नहीं बोलती ।" टॉमस - " असा होगा | मगर स्त्री कैसी भी हो, असे जल्दीसे सब कुछ मान लेनेकी आदत होती है।" बापू -- " मीरा जिस किस्मकी नहीं है । मगर यह तो मैं कर ही सकता हूँ कि वह जो कुछ लिखे, असकी नकल आपको भेज दे ।" प्रान्तीय स्वराज्यकी बात निकली। सुमीने छेड़ी ! यापूने कहा "मेरे प्रान्तीय स्वराज्यमें और आम तौर पर समझा जाता है अस प्रान्तीय स्वराज्यमें फर्क है । मेरे प्रान्तीय स्वराज्यमें प्रान्तकी सत्ता सभी बातोंमें सर्वोपरि होगी। सेना, आबकारी और सभी बातोंमें । बड़ी सरकारका नैतिक अंकुश रहेगा, मगर अिससे ज्यादा जरा भी नहीं । सेम्युअल होरसे मैंने यही बात कही थी। और वह समझा गया। अिसीलिभे असने कहीं भी मेरा झुपयोग नहीं किया और बोला नहीं कि गांधीको प्रान्तीय स्वराज्यसे सन्तोष है ।" टॉमस मगर आप जैसा प्रान्तीय स्वराज्य चाहते हैं, वैसा तो आकाशमें अड़ना ही कहलायेगा । अस पर नैतिक सत्ता तो चाहिये न ? काम किस तरह चलेगा ?" बापू --- " हा, वहाँ भी आदमी तो प्रान्तोंसे ही भेजे हुभे होंगे न ? अन्हें मानना चाहिये कि प्रान्त जो कुछ करता है ठीक करता है । क्या यह नहीं माना जाता कि राजाकी नैतिक सत्तासे सब काम होता है ? और जैसे वह स्वांग चलता है, वैसे ही यह स्वाँग भी चलेगा। जैसा प्रान्तीय स्वराज्य दो, तो मैं आज ही ले लूँ। मैं जानता हूँ कि मेरा यह प्रान्तीय स्वराज्य सर्प, शास्त्री वगैराको पसन्द नहीं है । कुछ कांग्रेसियोंको भी पसन्द न हो, मगर मुझे तो यही चाहिये ।" टॉमस "ये तो आकाशमें अड़ने की बातें हैं । और जिसके लिये अनिश्चित समय तक ठहरना चाहिये।" बापू- किसी भी समय तक ठहरनेको तैयार हूँ।" टॉमस मगर आज आधी रोटी मिल रही हो, तो क्यों नहीं लेते ?" बापू- " जरूर ले लूँ, अगर मुझे भगेसा हो कि वह रोटी है। मगर रोटी न हो और मिट्टी या पत्थर हो, तो कैसे लें ? असके बजाय असली रोटीका अिन्तजार न करूँ ?" मेजर डोील वापसे दाँत लगाये रखने की सिफारिश कर गये । कहने लगे कि अक बार मसष्ठोंको खुराक चबाने की आदत पड़ जाती है, तो फिर वे दाँतोक चौखठेको पकड़ते नहीं । जाते जाते टॉमसने वल्लभभाभीसे हाथ मिलाया २४७