पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२७१

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मैंने कहा 'यह और मेरे साथ भी मिलाया । मुझसे चरखेके बारेमें बातचीत की। असका अज्ञान यहाँ तक था कि पूछा ."४० वार सतमें अक कोट बन जाता है ?" ४१८००० वारसे अक धोती बनती है ।" तब कहने लगा "ओहो, तब तो आप १८ दिन कातें, तब अक धोतीके लायक कते । यही न? यह तो बड़ा घाटेका धन्धा है ।" मैंने कहा " यह फुर्मतका काम है। मुख्य धन्धेके रूपमें अिसकी बात ही नहीं है ।" तब कहने लगा अरुचिकर तो लगता ही होगा ।" मैंने कहा "नहीं, यह तो आराम है । दिन भर पढ़ने-लिखनेसे अब जानेके बाद अससे मनको हटाकर अिसमें लगानेसे जो परिवर्तन होता है अससे चित्तको आराम मिलता है ।" वह कहने लगा " आराम तो क्या मिलता है ? यह तो यंत्रिक काम है । आराम तो ब्रिज-जैसा कोी खेल खेलनेसे मिलता है।" मगर अिस बेचारेको क्या पता कि ब्रिजमें शायद वह हजार कमा ले या खो दे, मगर गरीबकी जेबमें अक पैसा भी नहीं जाता ? वापू आज मोगर पटेल (स्यादलावाले ) से मिले। अन्होंने वल्लभभाश्रीको सन्देश भेजा कि बारडोली लाज नहीं गंवायेगी । जिसमें जो लोग पड़े हैं अनमेसे कितने तो बर्बाद होंगे ही । बेचारे डॉ० फाटक (सतारावाले) ने कहा- " मुझे कुछ कहना नहीं है । मगर हमको चक्कीका काम अितना ज्यादा देते हैं कि ७ से ३ बजे तक हमें फुमत ही नहीं मिलती।" अभी मालूम हुआ कि ये लोग मिलने आते हैं, तब बापू जमीन पर बैठने हैं; क्योंकि अन लोगोंके लिओ कुरसियाँ नहीं रखी जातीं। अिसलिओ बापू भी नीचे ही बैठे न ? n

बापू कहने लगे यह बात निकलने पर कि तैयबजी बाबाके दाँत असली हैं या बनावटी, "वे तो पंजाबमें भी मरने जैसे हो गये थे न ? मुझे बुलाकर वसीयत भी कर दी थी। दो तीन दिनमें वापस अच्छे होकर काममें लग गये । मगर अितना होने पर भी वे अपने घर जानेकी बात तक नहीं करते थे। कहते कि घर नहीं जाना है । मिसेज तैयबजीको यहाँ बुलवा लो !"

प्रान्तीय स्वराज्यके बारेमें और बातें : बापूने कहा “अिस स्वराज्यसे ही सारे देशका स्वराज्य हो सकता है । यही सच्चा स्वराज्य है । वर्ना वह तो कोश्री स्वराज्य नहीं है । वे लोग जानते हैं कि फेडरेशन दे देनेसे कुछ भी राष्ट्रीय अकता हो नहीं सकती। अिसलि वे अिस फेडरेशनकी बातें करते हैं । स, शास्त्री और जयकर मुसलमानोंसे डरते हैं । अिलिअ मजबूत वही सरकार २४८