पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२७२

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माँगते हैं। हमारा मजबूत केन्द्र प्रान्तोंमें ही है। अपनी जरूरतके अनुसार हमारी ही फौज हो, और हम अपने ढंगसे सारा काम काज चलायें। जिसका अफ ही नतीजा होगा। हर प्रान्त अपने अपने ढंगसे विकास करता हुआ सारे देशका विकास कर दे या लइ मरे । आज तो केन्द्र अन्हें छीलकर खा जाता है। मगर जिस किस्मका फेडरेशन नरम लोग माँगते हैं और ये लोग दे रहे हैं, वह प्रान्तोंको खा जायगा। जिसमें तो वल्लभभाीके शन्दोंमें म्युनिसिपल स्वराज्य है। मैं जो कल्पना करता हूँ वह जैसी स्वतंत्रता है, जैसी अमरीकाके राज्योंकी या स्विट्जलेण्डके नगर राज्योंकी है। सम्भव है जिस मामलेमें बहुतसे हमारे कांग्रेसी भी मुझसे सहमत न हों। मगर अिससे क्या? वे भी समझ जायेंगे । मजबूत केन्द्रका परिणाम देखना हो, तो सिक्के का सारा अितिहास देख लो न । ३५ करोड़ रुपया तो सिक्के ढलवाने में ही फायदा होता है । वे रिजर्वमें ले गये और गला दिये गये। मिस बार बापूने आश्रमकी डाक आज शनिवारको ही पूरी कर डाली। आभमके पत्र भी कुछ कम थे। और बाहरके पत्र तो कम २५-६-३२ हो ही गये हैं । सरकारकी कितनी अन्धेर गरदी है, जिसका नमूना आज सुपरिप्टेण्डेण्टसे मिल गया । पसी बाटलेटको (टागोरकी अपीलके जवाबमें ) बापूने मौके महीने में पत्र लिखा था और असे महत्वका मानकर सुपरिटेण्डेण्टने सरकारके पास भेज दिया था। वहाँसे वह भारत सरकारके पास गया, वहाँसे सिंडिया आफिसमें गया और आखिर अिस मानेमें पसी वार्टलेटको खुब देरसे अभी अभी मिला । यह पत्र यॉर्कके आर्चबिशप और लिण्डसे और यंग हस्बैण्ड और मरेके कव्हरिंग लेटरके साथ प्रकाशित हुआ है। अिसलिओ असके बारेमें चर्चा शुरू हुओ। बम्बी सरकारको आज नींद खुली, तो सुपरिण्टेण्डेण्टसे पडती है कि गांधीने यह खत कब लिखा ? तुमने पास कैसे किया ? वगैग वगैरा । सुपरिण्टेण्डेण्ट साहबने पानीसे पहले पाल बाँध रखी थी, अिसलि बड़े खुश थे। पालको पक्को और मजबूत करनेके लिझे मुझसे खतकी नकल ले ली और कहने लगे अब मैं लिखेंगा कि मैंने तो नकल तक रख ली थी!" फिर खबर दी कि "विरलाके पत्रके बारेमें भी तहकीकात की गयी है । असमें तो कुछ या नहीं । अन्होंने विलायत जानेके बारेमें राय मांगी थी और आपने कहा या कि मैं यहाँसे राय नहीं सकता । अिस मामलेमें मेरे विचार सबको मालूम हैं। अिसमें जाँच करने की क्या बात है ?" असा लगता है कि यहाँसे जानेवाले पत्रोंसे सरकार अधीर बन गयी है। अिसलिओ भी जैसा हो सकता है कि जिस सप्ताह यहाँ थोड़े पत्र दिये गये हों ! भगवान जाने। २४९