पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२७८

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ment of corruption in American politics, -- might frighten one in regard to political prospects in India. A real high class English writer is so superior to mere propaganda writers like Upton Sinclair. Soon after finishing the 'Wet Parade' I got a book of short stories of Hardy. The contrast was so great. The delicate touch of real art is so different from the propagandist style. Hardy has a

short story called 'Son's Veto' that reminded me of the

episode in the 'Wet Parade', the incident of Roger Chilcote and Anita. All the difference between raw manure and fruit made out of it. The substance is the same, but the com- position and flavour are so different." "अमरीकाके शराबबन्दीके प्रस्न पर जो कुछ कहने लायक है, वह सब कहनेके लिये 'वेट पेरेड में अपन्यासकी कला भर दी गयी है । अकके बाद अक प्रकरणमें कहानी व्यवस्थित ढंगसे खुलती जाती है। शराबबन्दीके सारे मुद्दे असमें गूंथ दिये गये हैं । यह कुछ ज्यादासा लगता है कि निश्चित उद्देश और निश्चित कार्यक्रमके अनुसार सब होता है । अिस रायवालोंको सन्तोष हो, बल मिले और वे दलीलों और तफसीलोंके हथियारोंसे लैस हो जाय, अिस ढंगसे विषयके हरेक मुद्देकी अच्छी तरह छानबीन की गयी है । तुम्हें याद होगा कि मथुरादासने झोलाकी अक किताव मुझे पएनेको दी थी। वह अितनी बढ़िया है कि अिसकी तुलना असके साथ नहीं हो सकती । अस पुस्तकमें शराबबन्दी की नहीं, परन्तु शराबके सवालकी चर्चा की गयी है। सिंकलेरकी पुस्तकमें अमरीकी राजनीतिमें घुसी हुी रिश्वतखोरी की जोरदार निन्दा है । यह पुस्तक पढ़कर हिन्दुस्तानके राजनीतिक भविष्यके बारेमें दिलमें डर पैदा होता है । "मगर अप्टन सिकलेर जैसे निरे प्रचारक लेखकसे पहली पंक्तिका अंग्रेज लेखक बहुत बढ़ा चढ़ा है | 'वेट पेरेड' पूरी करनेके बाद मैंने फौरन हार्डीकी छोटी कहानियोंकी अक पुस्तक हाथमें ली । दोनोंके बीच बड़ा भारी फर्क दिखाी दिया । प्रचार शैलीसे कलाका कोमल स्पर्श दूसरी ही चीज है । हार्डीमें Son's Veto (पुत्रकी नामंजरी) नामकी मेक छोटी कहानी है । वह 'वेट पेरेड' के रोजर शिल्कोट और ओनिटाके प्रसंगकी याद दिलाती है । अिन दोनोंमें अितना ही फर्क है जितना कि कच्ची खाद और उनमेंसे पैदा होनेवाले फलमें होता है । बात तत्वतः अक ही है, मगर असकी रचना और सुगंध अलग अलग है। अिसमें कलाकार और प्रचारकके बीचके जिस भेदकी चर्चा है, असे देवदासको पत्र लिखते हुओ बापूने हाथमें ले लिया और अस पर अपनी राय २५५ "