पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

"अब काल्पनिक प्रश्नोंके बारेमें। तुम जिप्स ढंगसे अपने प्रश्नके बारेमें लिखते हो असी तरह मैंने समझा या और जैसे सवालोंको मैं काल्पनिक कहता हूँ। असे कोसी कोसी प्रश्न पूछे भी जा सकते हैं। मगर काल्पनिक प्रश्न बिलकुल न पूछे जायँ तो ज्यादा अच्छा है। असे सवालोंकी आदत कभी न डालनी चाहिये। जिन्हें असी आदत पड़ जाती है वे भैसा ही दोष करते हैं जैसा भूमिति जानने- वाला भूमितिके विशारदसे झुपसिद्धान्त हल करवाकर करता है। अिस तरह झुपसिद्धान्त हल करानेवाला कभी भूमिति अच्छी तरह नहीं जान सकता । यही हाल किसी खास सिद्धान्तके सिलसिलेमें पैदा होनेवाले अनेक प्रश्नोंका हल दुसरेसे करानेवालेका होता है । मगर नीतिके सिद्धान्तोंसे पैदा किये हुझे सवालों के बारेमें जड़में ही अक बड़ा दोष है। यानी हमने जो अदाहरण लिया हो वही बिलकुल ठीक बैठ जाय, यह यात जीवनमें कभी नहीं हो सकती। सोचे हुअ अदाहरणमें और सचमुच 'घटी हुी घटनामें नाखुनके बराबर भी फर्क हो, तो उसका हल बिलकुल दूसरा ही हो सकता है। और मिसीलिझे मैंने तुम्हें चेतावनी दे दी है कि जहाँ तक अपने अनुभवमें आयी हुभी या आनेवाली घटनाके बारेमें प्रदन न हो, वहाँ तक असा कुछ हो जाय तो असके लिअ तैयारी करनेके लिझे आजसे सोचे हुअ दृष्टान्तोंको हल करानेकी आदत डालनी ही न चाहिये । असा करनेसे अन वक्त पर असे काल्पनिक अदाहरणों के जवाब मदद देनेके बजाय बुद्धिको कुण्ठित करते हैं। जैसी बुद्धि मौलिक काम करनेके अयोग्य हो जाती है। अिससे यह अच्छा है कि मूल 'सिद्धान्तको अच्छी तरह समझ लिया जाय, असे हजम कर लिया जाय और असे अपने या अपनोंक जीवनमें लागू करते हुओ यदि भूलें हों, तो होने दी जाय । अनसे सीखनेको मिलेगा । मगर अस सिद्धान्तको अपनेसे ज्यादा जाननेवालोंसे भी मुश्किलोंके विरुद्ध पाल बाँधनेके लिओ काल्पनिक दृष्टान्त हल न कराने चाहिये । असा करनेसे आत्मविश्वासको हानि पहुँचती है । यह अनुभव होनेसे ही गीताकारने दसवें अध्यायका दसवाँ श्लोक रचा दीखता है | असमें भगवानने यह कहा है कि जो असे प्रेमके साथ सदा भजते हैं, अन्हें वह जैन वक्त पर बुद्धि दे देता है । यहाँ भगवानकी जगह 'सत्य' शब्दका अपयोग करके देखो, तो अर्थ बिलकुल स्पष्ट हो जायगा। अब मेरे कहनेका भाव तुम समझ गये होगे। तुम्हारे काल्पनिक प्रश्नोंसे मुझे अरुचि नहीं, मगर ये प्रश्न करनेमें तुम्हें प्रोत्साहन दूं तो तुम्हारा अकल्याण होनेका अन्देशा है। मेरा खयाल है लाभ तो होगा ही नहीं । तुम्हारा बलात्कारका ही प्रश्न लो । अिस काल्पनिक प्रश्नका अक अत्तर देने पर भी असके जैसी ही घटना हो जाय तो असका अत्तर बिलकुल दूसरा ही दे सकता हूँ। और असका अच्छी तरह समर्थन करके बता सकता हूँ । यह भी बिलकुल सम्भव है कि काल्पनिक प्रश्न और घटी हुी घटनाके वीचका - .