सम्बन्धियोंके दुःखका । मौतका दुःख माननेके बराबर और क्या अज्ञान हो सकता है।" 1 - ने पत्र लिखा "दुनियामें अत्पादन अपार है, लेकिन भुखमरी भी अतनी ही है। यह देखकर खादीकी तरफ झुकता जा रहा हूँ और अिस बारेमें लिखनेकी भी जीमें आती है। सिर्फ मिले चलाते हुझे और शक्करका कारखाना चलाते हुओ खादी और गुड़के बारेमें लिखना कितनोंको असंगत लगेगा।" बापूने हिन्दीमें लिखा ."खादीके साथ साथ आज तो मिल चलती ही है और कभी अरसे तक अवश्य चलेगी । अन्तमें तो दोनोंके बीचमें विरोध है ही । क्योंकि हमारा आदर्श तो यह है कि हरओक देहातमें खद्दर पैदा हो । और जिस तरह जब वह हरक देहातमें होगा, तब हिन्दुस्तानके लिओ मिलकी आवश्यकता नहीं रहेगी। लेकिन आज आप दोनों बातें साथ साथ अवश्य कर सकते हैं। और सत्य प्रदर्शित करनेके लिओ आदर्शको भी लोगोंके सामने रखा जाय । टीका करनेवाले टीका करते ही रहेंगे। असके लिओ कोभी चारा नहीं है । गुड़के बारेमें मुझे पूरा ज्ञान नहीं है । परन्तु मेरा खयाल असा रहा है कि खाँड बनानेके लिभे मिलकी आवश्यकता हमेशा रहेगी । देहातोंमें खाँड आसानीके साथ नहीं बन सकती है, न भूख हर देहातमें पैदा होती है । अिस कारण गुड़ चनानेका धन्धा सर्वव्यापक नहीं हो सकता । सम्भव है कि जिसमें मेरी कुछ गलती हो । कैसे भी हो अगर मिल और खादीकी बात अक ही मनुष्य कर सकता है, तो गुड़ और मिल-शकरकी बात तो अवश्य कर सकता है। मुद्रा शास्त्रका जितना अभ्यास मैं करता हूँ, अतना मेरा विश्वास दृढ़ होता चला है कि लोगोंकी कंगालियत दूर करनेके लिओ अिन किताबोंमें जो कुछ लिखा है वह अपाय हरगिज नहीं है। वह अपाय अत्पन्न और व्यय अपने आप साथ साथ चले जैसी योजना करनेमें है। और वह योजना देहाती धन्धोंका पुनरुद्धार ही है। कैसरलिंगकी पुस्तकमेंसे अिस्लामके बारेके विचार मैंने बापूसे पढ़नेके लिओ कहा। बापू कहने लगे- " अिस्लामकी ताकत न असके अकेश्वरवादमें है और न असकी बंधुत्ववृत्तिमें -- क्योंकि असका बन्धुत्व झूठा है मगर असकी ताकत तो असकी धर्म सम्बन्धी श्रद्धामें है। मुसलमान मात्रको अपने धर्मके बारेमें अक प्रकारकी अटल श्रद्धा है । असका बल अिसीमें है।" मालूम होता है कि चिन्तामणिने होरके बयानके खिलाफ काफी विरोध संगठित किया है । अिसमें मुहम्मद जहीर अली (लखनभू)का ६-७-०३२ बयान ध्यान खींचने लायक है । अन्होंने मैक्डोनल्डकी अनुदारोंके आगे पूरी तरह झुक जानेकी नीतिके वारेमें 'सण्डे अक्सप्रेस' से अद्धरण दिया है : >
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