पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३०८

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आज बापू कहने लगे "असा हो सकता है कि अब ये लोग किसी न किसी बहाने बिल तक पहुँचें ही नहीं और यह कहकर १४-७-२३२ बैठ जाय कि जाओ, तुम्हें कुछ नहीं चाहिये, तो हमें कुछ. देना भी नहीं है।"

अस निकम्मी डाकमें पंजाबके अक. खानका पत्र था कि आप राजनीतिको नहीं समझते, असे आगान्याँ और शास्त्री-सयू जैसोंको सौंप दीजिये और आप हिमालय चले जाअिये और अपनी भूल मान लीजिये । असे बापूने अपने हायसे लिखा: Dear friend, "I thank you for your admonition. You do not expect me to argue with you. I fear that as prisoner, I would not be permitted to enter into argument over political affairs. But I may tell you that deep thinking in the solitude of a jail has not induced a change in my outlook." "प्रिय मित्र, "आपकी चेतावनीके लिअ धन्यवाद । आप यह अम्मीद तो नहीं रखते होंगे कि मैं आपसे बहस क । कैदी होनेके नाते राजनीतिक मामलोंकी चर्चा करनेकी मुझे अिजाजत भी नहीं मिलेगी । आपसे अितना कह हूँ कि जेलके कोनेमें बैठकर गहरा सोचने पर भी मेरे खयालोंमें कोभी तब्दीली नहीं हुआ है।" वल्लभभाभी " अिन गालियाँ देनेवालोंको आपने अपने हायसे पत्र क्यों लिखा?" बापू - "जिन्हें हाथसे ही लिखना चाहिये ।" वल्लभभाभी " गालियाँ देनेवाले हैं जिसीलिभे? अिसी तरह तो बहुतसे लोग सुद्धत हो जाते हैं।" चा. " मुझे नहीं लगता कि जिससे हमारा कोी नुकसान हुआ है।" मेक और आदमीने कर्मके कानूनको अीश्वरकी इस्तीका विरोधी बताया या और यह कहकर अीश्वरकी प्रार्थनाका खण्डन किया था कि असत् और अनिष्टको दूर करनेकी श्रीश्वरकी शक्ति नहीं है । असे भी बापूने अपने हाथसे पत्र लिखा । बापू बोले " असे आदमी भीमानदार हों तो अन पर अंक पत्रका भी बहुत असर हो जाता है।" There can be no manner of doubt that this universe of sentient beings is governed by a Law. If you can think २८५ -