" of Law without its Giver, I would say that the Law is the Law Giver, that is, God. When we pray to the Law we simply yearn after knowing the Law and obeying it. We become what we yearn after. Hence the necessity for prayer. Though our present life is governed by our past, our future must by that very Law of cause and effect, be effected by what we do now. To the extent therefore that we feel the choice between two or more courses we must make that choice. "Why evil exists and what it is, are questions which appear to be beyond our limited reason. It should be enough to know that both good and evil exist. And as often as we can distinguish between good and evil, we must choose the one and shun the other, "अिसमें शक नहीं कि यह सचराचर जगत अक कानूनसे चलता है । अगर कानून बनानेवालेके बिना कानूनकी आप कल्पना कर सकते हों, तो मैं कहता हूँ कि यह कानून ही कानून बनानेवाला यानी भीश्वर है । हम जब अस कानूनकी प्रार्थना करते हैं, तब हम अस कानूनको जानने और असका पालन करनेके लिओ अल्कण्ठा दिखाते हैं । हम जिसकी लालसा रखते हैं, वही वन जाते हैं। अिसलि प्रार्थनाकी जरूरत है। हमारा मौजूदा जीवन पिछले जीवनसे नियत होता है । अिसी कार्य-कारणके नियमसे हमारा भविष्यका जीवन हमारे मौजूदा कामोंसे बनेगा । हमारे सामने दो या अससे ज्यादा कामोंके बीच चुनाव करनेका सवाल हो तो हमें यह चुनाव करना ही पड़ेगा । " बुराी अिस दुनियामें क्यों है और क्या चीज है, ये प्रश्न हमारी मर्यादित बुद्धिसे परे हैं । हमारे लिओ अितना जानना काफी है कि बुराभी और भलाी दोनों हैं; और जब जब हम अिन दोनोंको अलग अलग जान सकें, तब तब हमें भलामीको पसन्द करना चाहिये और बुरामीको छोड़ना चाहिये।" ओक बंगाली बालकने पत्र लिखा था. 'आपने दूध छोड़नेका व्रत लिया या। फिर बकरीका दूध लिया जिसमें क्या कोी खास फायदा नजर आया? मैं तो चावल खानेवाला हूँ, मुझे दूधके विना पोषण किस चीजसे मिले ?' असे लिखा: "I took goat's milk because I had vowed not to take buffalo's or cow's milk. Physiologically there is little difference between the three. It would have been better . २८६
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