पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३१६

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| अपर दूसरे खतमें : "किसी मनुष्य या वस्तुको लक्ष्यमें रखकर प्रार्थना हो सकती है। असका फल भी मिलता है। मगर जैसे अद्येश्यसे रहित प्रार्थना आत्मा और जगत्के लिअ ज्यादा कल्याणकारी हो सकती है। प्रार्थनाका असर अपने पर होता है यानी अससे अन्तरात्मा ज्यादा जाग्रत होती है; और ज्यों ज्यों जापति ज्यादा होती है, त्यों त्यों असका असर ज्यादा फैलता है हृदयके वारेमें जो कुछ लिखा है वह यहाँ भी लागू होता है। प्रार्थना हृदयका विषय है। मुंहसे बोलने वगैराकी क्रियायें हृदयको जाग्रत करनेके लिखे हैं। व्यापक शक्ति जो बाहर है वही अन्दर है और अतनी ही व्यापक है। असके लिभे शरीर बाधक नहीं है। बाधा हम पैदा करते हैं। प्रार्थनासे बाधा मिटती है। प्रार्थनासे अिच्छित फल मिला या नहीं, जिसका हमें पता नहीं चलता। मैं नर्मदाकी मुक्तिके लिझे प्रार्थना करूँ और असे दुःखसे छुटकारा मिल जाय, तो मुझे यह न मान लेना चाहिये कि वह मेरी प्रार्थनाका फल है । प्रार्थना निष्फल तो हरगिज नहीं जाती, लेकिन हमें यह पता नहीं लगता कि कौनसा फल देती है। और हमारा सोचा हुआ फल निकल आये तो वह अच्छा ही है, असा भी नहीं मानना चाहिये । यहाँ भी गीताबोध पर अमल करना है। प्रार्थना को हो तो भी अनासक्त रहा जा सकता है। किसीकी मुक्ति हमें भिष्ट लगे तो असके लिझे हमें प्रार्थना करनी चाहिये, लेकिन .वह मिले या न मिले अिस वारेमें हमें निश्चिन्त रहना चाहिये । अलटा नतीजा निकले तो यह माननेका कारण नहीं कि वह प्रार्थना निष्फल ही गयी। क्या जिससे ज्यादा स्पष्टीकरण चाहिये ? अस्थरका लम्बा पत्र आया। असमेंसे अक वाक्य बहुत पसन्द आया। मेरी दो छोटी लड़कियाँ जितना मुझ पर विश्वास रखती हैं, १८-७-३२ अतना मैं अीश्वर ,पर रख सकूँ तो कितना अच्छा ? हमारी बिल्लीके छोटे बच्चे रोज सवेरे हमारे आसपास चक्कर काटते हुझे दूधके लिये तिलमिलाते हैं और नहीं मिलता तो बढ़ी ही च्याँम्याँ मचा देते हैं, यह देखकर मुझे भी यही विचार आता है । अस्थरको पत्र लिखा ।' असके अक हिस्से में जिन्दगीकी छोटी छोटी वातोंमें बापूका पश्चिमी दृष्टिकोण दिखायी देता है : “You tell me how desolate Bajaj's house looked for want of woman's touch. I have always considered this as a result of our false notions of division of work between men and women. Division there must be. But this utter helplessness on the man's part when it comes to keeping a household in good order and woman's helplessness when it comes to 13 -A २९३,