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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३३४

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। वह अक बार साअिमन कमीशनके हिमायतीके रूपमें खड़ा हुआ, फिर नरम दलवालोंका विरोध देखकर भुक गया। अक बार असने सविनयभंगकी लड़ासीको लाठी और आर्डिनेन्ससे कुचलनेकी कोशिश की । बादमें कांग्रेसका जोर देखा तो झुक गया । असकी सचांीकी बातोंसे अरुचि होती है । अब ये बन्द हो जाय तो ही अच्छा । अगर वह गोलमेज परिषदको फिर जिन्दा करा दे, तो जरूर असकी सचाभीके बारेमें विचार किया जायगा । बापू : "मैं भिस विचारका नहीं । जिस आदमीमें सचाभी है, जिस अर्थमें कि उसमें सुखाइ-पछाड़ नहीं, दावपेंच नहीं। वह सीधी सादी बात करनेवाला है । साभिमनके समय असे वह बात अच्छी नहीं लगती थी, मगर असने विचार कर लिया कि अनुदार दलके नाते जो नीति अपना ली गयी है असके खिलाफ न जाया जाय । असके खरेपनकी भी हद है और वह हद यह है कि ब्रिटिश साम्राज्य अखण्ड रहे । असे खतरा हो तो वह वचन भंगका भी विरोध नहीं करेगा। वह ब्रिटिश साम्राज्यको ीदवरकी अक अद्भुत कृति माननेवाला है - जैसा कि हरक अनुदार दलवाला मानता है ---- और असी दृष्टिसे वह सब चीजोंको देखता है। मगर वह खरा हो या न हो जिससे क्या सरोकार ? हमारा तो वास्ता अिस वातसे है कि हमें जो चाहिये वह मिलता है या नहीं।" आज सातवळेकरका लम्या पत्र आया । विश्वरूप दर्शनवाले ११वें अध्यायको बापूने अक महाकाव्य कहा है। असके बारेमे अन्होंने लिखा है : " यह सिर्फ कान्य नहीं है, यह सत्य है। वासुदेवः सर्वमिति म महात्मा सुदुर्लभः-- यह गीताका सिद्धान्त वेदों और झुपनिषदोंमें बार बार आता है और अिस अध्यायमें भी वासुदेवः सर्वम् बतानेका तात्पर्य यही है कि विश्व- मात्रमें वासुदेव है, विश्वका हर व्यक्ति वासुदेवका अलग अलग अंग बन जाता है।" अन्हें बापूने हिन्दीमें लम्बा पत्र लिखाया : “विश्वरूप-दर्शनयोगके बारे में जो आपने लिखा है वह सब यथार्थ है। तदपि मैंने जो अस अध्यायकी भूमिकामें लिखा है, असमें कोभी फर्क नहीं होता है। सारे जगतको जो मनुष्य वासुदेव स्वरूप मानेगा, वह विश्वरूपका दर्शन अवश्य करेगा । परन्तु रूप अपनी कल्पनाकी ही मूर्ति होगा । खिस्ती जगत्को औश्वर रूप मानता हुआ अपनी कल्पनाके अनुकूल मूर्ति देखेगा । जो जैसे भजता है वैसे ीश्वरको देखता है। हिन्दू सभ्यतामें जो पैदा हुआ है और असीकी शिक्षा जिसने पायी है, वह ग्यारहवाँ अध्याय पढ़ते हुओ यकेगा नहीं; और असमें अगर भक्तिकी मात्रा होगी तो अस अध्यायमें जैसा वर्णन है वैसा ही विराट रूप दर्शन करेगा। परन्तु जैसी कोी मूर्ति जगत्में असकी कल्पनाके बाहर नहीं है । ब्रह्म, आत्मा, वासुदेव, जो कुछ भी विशेषण अस शक्तिके लिओ हम