यह स्पष्ट नहीं होता कि नरम दलवालोंके प्रस्ताव पर दस्तखत क्यों नहीं किये। सम्भव है अन्होंने सहयोगकी शर्ते नरम दलवालोंसे सख्त रखी हों और अन्हें नरम दलबालोंने न माना हो । दूसरे, अिस वातका भी जवाब नहीं है कि वे होरसे पत्र-व्यवहार कर रहे हैं। आज सर पुरुषोत्तमदासका बयान वही बात जाहिर करता है, जो सुनकी तरफसे बापने पहले ही कह दी थी । अिनकी शत नरम दलवालोंसे ज्यादा थीं। यह बात नहीं थी कि गोलमेजका तरीका फिरते अपनाया जाय तो जितनेसे हमें सन्तोष हो जायगा । और विलायतसे आनेके बाद अिन्होंने होरको अक भी पत्र नहीं लिखा । . मेजर भण्डारीने यह कहा ,या कि छगनलाल जोशी और गंगा बहनको मुझसे मुलाकात करने देंगे । फिर भी कल शामको ये लोग २३-७-३२ आये तब अन्हें अिनकार कर दिया ! कारण यह है कि ये दोनों जन कार्यकर्ता हैं और अन्हें मुझसे मिलने देनेमें डर लगा । और कानून तो मौजूद ही था कि सम्बन्धियोंके सिवा और किसीको नहीं मिलने दिया जा सकता ! छगनलाल जोशी पहले ही दिन बापूसे मिल चुके थे। असमें किसी तरहकी जोखम नहीं थी, लेकिन मुझसे मिलने देने में जोखम: लगी। विशर फिशरकी The Thin Little Man Gandhi (छोटासा दुबला पतला आदमी गांधी) पुस्तक आयी थी। वह भी डरके मारे नहीं दी और सरकारके पास भेज दी । मुझे लगता है कि यह तो ठीक ही किया, क्योंकि ये पढ़ लेते तो भी डरकर न देते और सरकारमें कोसी समझदार आदमी होगा, तो वह पढ़कर अिस पुस्तकको निर्दोष ठहरा कर दे सकता है रातको सोते वक्त बापू कहने लगे. " वल्लभभाभी, यह मालूम है न. कि अिन गुजराती पत्रोंके बारेमें हम कड़वी बूंट पी रहे हैं ?" वल्लभभाभी "कैसे १" यापू - " अंग्रेजीके पत्र तो तुरन्त भेजे जा सकते हैं, मगर गुजरातीकी कठिनासी रहेगी। जिस तरह यह मुझे बहुत अपमानजनक लगता है कि ये लोग हमारे आदमियोंका अविश्वास करते हैं । अिन पत्रोंका अनुवाद हो और ये लोग पास करें, तब कहीं ये जा सकते हैं, यानी भिन लोगोंमें कोभी गुजराती जाननेवाला जैसा नहीं मिलता जिसका जिन्हें विश्वास हो! यह भयंकर बात है। अिसलि अिस मामलेमें लहामी करनी चाहिये । लड़ाभी यह कि हम जिन्हें कहें कि जिस शर्त पर हम पत्र नहीं लिखेंगे । " वल्लभभाभी.---"ये लोग तो वेहया है। कह देंगे कि भले ही मंत लिखो, हमारा क्या बिगड़ेगा !" बापू ." अिसकी कोमी परवाह नहीं । " मैंने कहा यह तो ठीक है। ये लोग क्या कहते हैं, अनपर कोभी असर हो. या न हो, जिसका विचार करनेकी.
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