पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३३७

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जरूरत नहीं, मगर यह मामला और मीराबहनका मामला अक-सा नहीं है । -वहाँ तो अक जिवीत सिद्धान्त था, यहाँ मुझे औसी बात नहीं लाती । यहाँ तो ये लोग कहते हैं कि अंग्रेजीमें लिखे होंगे तो तुरन्त जायँगे। मगर आप अंग्रेजीमें न लिखें तो भले ही न लिखें, हमें अनकी जाँच पड़ताल तो करनी ही होगी। अगर ये लोग यह आग्रह करें कि आपको ये पत्र अंग्रेजीमें 'लिखने चाहिये तब तो असा नहीं किया जा सकता । राय कहने लगे- " आडे टेढ़े ढंगसे वे कह ही रहे हैं कि अग्रेजीमें लिखो ।" मैंने कहा- "मुझे लगता है कि आप जिस दोषकी शिकायत कर रहे हैं, वह अिस प्रथाकी जड़में है। " बापू कहने लगे ." हाँ, यह तो है, मगर अिसलि असे कायम क्यों रखा जाय ? अपने स्वार्थके लिओ ?" - कल रातकी चर्चावाला मामला सबेरे घूमते घूमते फिर हाथमें लिया । वल्लभभाीकी राय पछी । वल्लभभाओ कहने लगे २४-७-३२ "अिस तरह पत्र लिखते रहना पड़े अससे तो बन्द कर देना अच्छा है। अिन लोगोंमेंसे तो किसी पर अिसका असर पड़ेगा नहीं। बापू असर न हो अिसकी परवाह नहीं । वैसे अन्तमें असर पड़े बिना नहीं रहता।" फिर मेरी राय पूछी । मैंने कहा " अगर हम यह मान लेते हैं कि ये लोग अंग्रेजीके पत्रोंकी जाँच करें (यानी यह मान लें कि वे हम पर विश्वास न करके हमारे पत्र देखना चाहें ), तो हम यह भी क्यों न मान लें कि वे गुजरातीका अनुवाद करें ? ओरियंटल ट्रांस्लेटरके दफ्तरका काम पत्रोंका अनुवाद करना है, राय देना नहीं ।" बापू कहने लगे " यह बात ठीक है। मगर मैं कहाँ कहता हूँ कि दफ्तरकी राय ले १ मगर अन्हें अपना अक भरोसेका कर्मचारी बुलवाकर असे ये पत्र दिखला लेने चाहिये । और जिस तरह अंग्रेजी पत्र पास करते हैं, वैसे ही अिन्हें भी पास करके भेज देना चाहिये । अन्हें तो अिन कर्मचारियोंका भी विश्वास नहीं है, अिसलिओ सबका अनुवाद कराकर देखना है । यह बड़ा अपमान जनक लगता है । जनरल बोया तो अंग्रेजी जानता था, सुसका स्वार्थ भी था । फिर भी वह कहता था - 'नहीं, मैं तो डच भाषामें ही बात करूँगा।' डचमें बात करने की किसीने असे दक्षिण अफ्रीकाले सलाह नहीं दी थी, मगर असे खुद ही मुझ गया । अिसी तरह हमें यह मुझ जाना चाहिये । यह तो है नहीं कि ये पत्र लिखे बिना काम नहीं चल सकता। यह धर्म नहीं कि ये पत्र लिखे ही जाय । अिस्में आत्मसन्तोप है, दूसरोंके लिझे आश्वासन है । मगर अिसमें हमारी भाषाकी वेअिज्जती होती हो और हमारे आदमियोंका अविश्वास