पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३४

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. । - " नहीं है ।" मैंने पूछा- "बचपनमें ?" बापू सुपरिष्टेण्डेण्टने 'हाँ' कहा। जेलर साहिब बेचारे छह बजेसे आकर बैठे, सवाछह-सादेछह बजे हम देखने निकले । मगर चन्द्रमाने सत्याग्रह कर दिया । सामने क्षितिज पर बादलोंमें वह जो छिया तो छिपा ही रहा, मानो वह यह अपालम्भ दे रहा था कि 'तुम अपना ग्रहण होते हुओ दुनियामें किसीको देखने नहीं देते, तो मेरा ग्रहण किस लिये देखना चाहते हो !' सात बजे तक अिन्तजार किया। प्रार्थनाका समय हो गया। बापू थक गये । करुण स्वरमें वल्लभभाभीसे कहा " वल्लभभाभी, ग्रहण तो दिखाओ देता ही नहीं।" जेलरसे कहा "तो आप जाभिये, आपको तकलीफ दी सो माफ कीजिये । " जेलरने कहा। जी अभी दस-पाँच मिनट ठहरिये । जितना ठहरे हैं तो थोड़ा और सही। शायद बादल विखर जायें और चन्द्र दिखाजी दे ।" ठहरे, सवासात हो गये । याव अन्तमें निराश हो गये और कहने लगे "बस, अब तो आप जाअिये। अब हम प्रार्थना करेंगे ।" बापूसे मैंने पूछा "वा, क्या आप अितनी अत्सुकतासे ग्रहण देखनेके लिझे पहिले भी कभी खो रहे थे ?" बापू बोले- "नहीं, कभी नहीं । यह तो जिस आकाश दर्शनके नये शोकका ही परिणाम "बचपनमें ? अरे, उस समय तो माँ ग्रहण देखने ही कहाँ देती थी ? वह कहती थी "नहीं बेटा, अपने ग्रहण नहीं देखना। देख लें तो कुछ न कुछ बुरा हो जाय ।' यह सुनकर हम चुप रह जाते थे।" रातको पत्र लिखाने बेटे । ओक सरकारी पैशनरका खत था । ७० वर्षकी अमर हो गयी है, परन्तु दमेका रोग बहुत दुःख देता है । असने पूछा थाः 'आपने अनेक प्रयोग किये हैं और कुदरती अपायोंसे रोग अच्छे किये हैं। तो क्या मुझे कुछ न बतायेंगे ?' बापूसे मैंने कहा " असे पत्रोंका कहाँ जवाव देते फिरेंगे ?" बापू बोले- असा कहकर पत्र फाड़ दिया । तर सरदार बोले " अरे लिखो न कि अपवास कर, माजी खा, काशीफल खा, सोडा पी।" बापू खिल-खिलाकर हंसे और मुझसे कहने लगे यह कागज झुठा लो। हमें झुसे लिखना है ।" सचमुच पत्र लिखाया । असका सार यह था कि 'आपको डॉ० मुथुको लिखना चाहिये । परन्तु हमारा अशास्त्राय किन्तु अनुभवका ज्ञान यह बताता है कि आपको तीन अपवास करने चाहिये और फिर दूध और नारंगीके रसके साथ अपवास छोड़ना चाहिये। मितना करके देखिये. तो फर्क पड़ेगा।' यह लिखा कर बोले. यह प्रयोग तो अच्छी तरह किया हुआ है । अक बहादुरसिंह नामके आदमीका कुदरती अिलाज किया था। वह अच्छा हो गया, अिसलिओ अपने मित्र लुटावनसिंहको मेरे पास ले आया । यह मेरा मुवक्किल भी थी । अस समय मुवक्किल लोग अिन बीमारियोंकी बात करते ) "अच्छा। "महादेव,