पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३९०

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यह सब करना पड़ता है । हिन्दू-मुसलमान अपवासके वक्त हकीमजीको भी मैंने यही बात कही थी । जिस समय भी मेरे सामने यह प्रश्न धार्मिक है, अिसमें राजनीतिकी जरा भी वृ नहीं है। " परेशानी तो होगी । बेचारे कैम्पवालोंका क्या होगा ? मगर भिन सबसे हम निपट लेंगे । जिन लोगोंसे कहेंगे कि 'खबरदार, अपवास किया है तो । सरकारको भी हमारे खिलाफ कहनेको मिल जायगा और अपवास बिलकुल बनावटी हो जायगा । तुम्हारा समय आये तब अपवास करना न! सामूहिक अपवास नहीं हो सकता सो बात तो है नहीं । हिन्दू-मुसलमानोंमें आग लगी हो, उस वक्त हिन्दुओंको रोको और जब तुमसे कुछ न हो सके तो तुम सामूहिक अपवास कर सकते हो। खुद मैंने भी हिन्दू-मुसलमानों के सवालसे हाथ नहीं धो लिये हैं । परन्तु मैं देखता हूँ कि हिन्दु जाति अभी मेरे साथ नहीं है, और असे जबतक मारनेका शौक है तब तक मुझसे कुछ नहीं हो अगर ये लोग मेरे साथ अहिंसक बन जाय, तो अिसी तरहके अपायोंसे ये झगड़े खत्म कर दें ।' नहीं, तुम न घबराओ और समझके साथ मान लो कि यह चीज अपने समय पर मालूम हो जायगी । यही ठीक है।" सकता । $$ गृहस्यकी हैसियतसे वापूको अपने अत्तम रूपमें देखना हो, तो देखो अपनी पुत्रवधू सुशीलाको लिखा हुआ यह पत्र: २२-८-३२ तुम आलसीको तुम्हारा दो पन्नेका पत्र लम्बा लगा, मुझे तो जरासा मालूम हुआ होता है। तुम्हें मालूम है कि जब मैं अपने भाीको विलायतसे पत्र लिखता था तब बीस पच्चीस पन्ने भरता था और फिर भी वह पत्र मुझे छोटा जान पड़ता या! असा नहीं लगता था कि भाीको भी बड़ा लगेगा और पढ़ने में तकलीफ होगी, बल्कि यह विश्वास था कि अन्हें अच्छा लगेगा । हफ्तेभरमें जो कुछ किया हो, जिनसे मिले हों, जो कुछ पढ़ा हो और जो दोष किये हों, सब लिखने में पन्ने भर जायें तो जिसमें आश्चर्य क्या ? और फिर वह भी भाभीको ही लिखना था, अिसलिओ जितना होता सब असमें भर देता था। " मगर तुम तो अक लकीरमें निपटा देनेवाली ठहरी । चौड़े चौड़े अक्षरोंमें पचास लकीरें लिख दी, तो यही लगेगा कि बहुत हो गया । असी शाहजादी हो। खैर तुम मणिलाल पर अंकुश रखो तो काफी है। मणिलाल भोला है, तुम गहरी हो । यही जान कर तो तुम्हारी शादी की है। मैं मानता हूँ कि लोगोंकी तुम्हारी परीक्षा सच्ची ही होगी। अभी जरा और अंकुश रखो । यह न ३७१