सिविल सर्जनके बारेमें कहने लगे "अिस आदमीको हमने घुन्ना समझ लिया था, मगर असा नहीं है। आदमी अच्छा मालूम हुआ । भुसकी आये मैं बहुत देर तक देखता रहा, अनमें मुझे भलमनसाहत दिग्वाभी दी। डोभील भी भला तो मितना ही है, मगर बातूनी है। यह आदमी बावनी नहीं लगा। असकी बातें-बीमारोंके बारेमें, यहाँके लोगों के दौतामें ८०फी सदी पायरिया होने और अत्तरमें वह न होनेका कारण खुराक है, वगैरा; यहाँके लड़कोंका पुस्तक ज्ञान बहुत होता है, मगर प्रत्यक्ष कार्यमें शून्य होते हैं। यदि प्रसूतिका केस हो गया तो बच्चा हो जानेके बाद फिर नच्चाको वापस देखने ही नहीं जाते । फिर कहने लगा, मार अिन लड़कोंकी कैसी मुश्किल है ! हम छुटपनसे ग्रीक लेटिन जानते हैं, सारे शन्द परिचित-से होते हैं। भिन लाकोंको पग पग पर कोश देखना पड़ता है और याद रखना कितना मुश्किल है। आज बापूने वा और काकाके नामके पत्र मेजरको अडवानीके पास भेजनेको दिये। वा की बात निकलने पर बापूने कहा २७-८-३२ "सुना है कि सुसका वजन १६ पोण्ड घट गया है। मगर जिसमें अतिशयोक्ति है, क्योंकि असा हो तो वह हाइपिंजर बन जाय ।" मेजरने कहा ." यह बात सच होगी, क्योंकि अडवानीने मेजर होगीलको लिखा था कि झुनका वजन घटता जा रहा है और मैं मक्खन ज्यादा देनेका आग्रह कर रहा हूँ, मगर वे लेनेसे बिलकुल अिनकार करती हैं। जिस पर डोमीलने लिखा कि न ले तो जबरदस्ती थोड़े ही दे सकोगे ! तुम्हें डॉक्टरकी हैसियतते जो कुछ करना अचित है, वही करो।" सुपरिटेण्डेण्टने कहा कि हमें दूसरे नम्बरका अनाज लेनेका हुक्म है मगर मैं पहले नम्बरका ही लेता हूँ, क्योंकि आखिर तो दुसरे नम्बरका अनाज महँगा पड़ता है, कैदियोंका स्वास्थ्य बिगड़ता है और दवामें खर्च होता है। घुड़दौड़के बारेमें बापूने अक बार कुछ दिन पहले सुपरिण्टेण्डेण्टको भाषण दिया था। असने बचावमें मिताचारकी दलील दी थी। बापूने कहा था कि हमने पश्चिमके दुर्गुणोंकी ही नकल करना सीखा है । जिसने कितने कुटुम्ब बर्बाद कर दिये हैं, यह हम सोचते ही नहीं। अितने पर भी कल फिर सुपरिण्टेण्डेण्ट मजेसे अिसीकी बात कर रहा था। फलाने अितना खोया, फलाँने अपनी साख गॅवा दी, फलाने सारी जायदाद खो दी, वगैरा वगैरा । तो भी खुद तो 'मर्यादामें ही खेलता है ! और अिसमें बड़ा मजा आता है।'
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