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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/४०४

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. वल्लभभाओकी पढ़ामी चल रही है।" आज प्यारेलालको लिखा "वल्लभभाभी अरची घोडेकी तेजीसे दौड़ रहे हैं । संस्कृतकी किताब हाथसे छूटती ही नहीं । जिसकी मुझे आशा नहीं थी ! लिफाफोंमें तो कोओ सुनकी बरावरी नहीं कर सकता । लिफाफे वे नापे बिना बनाते हैं और अन्दाजसे काटते हैं, मगर बराबरके निकलते हैं और फिर भी असा नहीं लगता कि अिसमें बहुत समय लगता हो । अनकी व्यवस्था आश्चर्यजनक है । जो कुछ करना हो असे याद रखनेके लिओ छोड़ते ही नहीं । जैसे आया वैसे ही कर डाला | कातना जबसे शुरू किया है, तबसे परावर समय पर कातते हैं । अिस तरह सूतमें और गतिमें रोज सुधार होता जा रहा है । हायमें लिया हुआ भूल जानेकी बात तो शायद ही होती है । और जहाँ अितनी व्यवस्था हो, वहाँ धाँधली तो हो ही कैसे ?" लड़कियोंका शिक्षण आजकल बापने अपने हाथमें लिया है । ने लिखा आपका पत्र पड़नेके बाद मैंने अखण्ड ब्रह्मचर्यका व्रत लेनेका निश्चय किया है । " असे लिखा "तू अखण्ड कुमारी रह सके तो मुझे जरूर अच्छा लगे । मगर मैंने बहुतसे लड़कों और लड़कियोंको अपने आपको धोखा देते देखा है। जिसे पूर्ण ब्रह्मचर्य पालना है, अ॒समें पूर्ण सत्य चाहिये और वह कोभी चीज छियावे नहीं । और ब्रह्मचर्य क्या है, अिसका पूरा ज्ञान होना चाहिये । विकारोंको कादमें रखना बड़ी बात है । जो औसा करना चाहता है, असे सभी भोगोंका त्याग करना चाहिये । यानी वह जो कुछ करता है वह भोगके लिअ नहीं करता, बल्कि जरूरी समझकर करता है । और अिसलिओ जो जरूरी नहीं है वह नहीं करता । असकी खाने-पीने, अठने-बैठने और पहनने-मोदनेकी सारी क्रियायें अिसी तरह होती हैं । यह सब करनेकी तुझमें शक्ति हो, तो बहुत अच्छा । न हो तो नम्रताके साथ मान लेना चाहिये, और जैसा असंख्य लड़कियों करती हैं वैसा ही तुझे भी करना चाहिये । असमें कोपी दोष नहीं माना जायगा । शक्तिके बाहर कुछ नहीं हो सकता ।" को प्रार्थनाके मौनके बारेमें लिखा. "प्रार्थनामें शामके लिओ पाँच मिनिटकी सूचना मेरी थी। दोनों ही वक्त अितनां मौन रखा जाय तो जरूर बेहतर है । सब जिसमें दिल लगाकर शामिल हों, तो शोर जरूर बन्द हो जाय । बच्चोंमें भी अितना समय बचानेकी आदत पड़े। मैं तो जैसी सभामें भी गया हूँ, जहाँ आधे घण्टे तक मौन रखा जाता है । यह विलायतकी बात है । हमारे यहाँ मौनकी बड़ी महिमा है । समाधि मौन ही है। मुनि शब्द भी अिसीसे निकलता है । मौनके समय पहले पहल नींद आती है और तरह तरहके विचार आते हैं, यह सब सच है। जिसे दूर करनेके लिओ ही मौनकी जरूरत है । हमें बहुत बोलने और आवाजें सुननेकी आदत पड़