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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/४०५

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- गयी है । अिसलि मौन कठिन लगता है। थोड़े अभ्याससे वह अच्छा लगने लोगा, और अच्छा लगनेके बाद अमसे जो शान्ति मिलेगी वह अलौकिक होगी । हम सत्यके पुजारी हैं, अिसलिझे हमें मौनका अर्थ जानकर अस अर्थके अनुसार ही मौन पालनेकी कोशिश करनी चाहिये । मौनमें भी राम नाम तो रटते ही रहे । असल बात यह है कि हमारा मन मोनके लिखे तैयार होना चाहिये । जरा विचार करनेसे असका महत्व समझमें आ सकता है । क्या समूहमें पाँच मिनिट तक स्थिर बैठना हमें नहीं आ सकता ? तुम कभी नाटकमें गये हो ? बहुतसी नाटकशालाओंमें बातें करनेकी मनाही होती है । मेरे जैसे रसिया घण्टे भर पहले ही जा बैठते हैं । नाटकका शौक अक घण्टेका मौन रखवाता है । मगर अितना ही काफी नहीं होता । नाटक तो चार पाँच घण्टे तक होता है। जिस सारे समयमें देखनेवालोंको मौन ही रखना पड़ता है। मगर वह अच्छा लगता है । वह मनके अनुकूल है, अिसलिओ मौन कठिन नहीं लगता । तो फिर क्या अीश्वरकी खातिर पाँच मिनिटका मौन भारी लगना चाहिये ? अिस विचारश्रेणीमें भूल हो तो बताओ, और भूल न हो तो रसके साथ मौन धारण करो और असका विरोध करनेवालों के सामने मेरी ओरसे वकालत करो। भी न मानो कि हममें हों सिर्फ वे दोष ही सहन किये जाने योग्य हैं। मेरी राय तो असी है कि जो सुधरनेकी कोशिश करनेवाले हों, अन सबका संग्रह किया जाय.। जो अपने दोषोंका पुजारी है यानी दोपोंको गुण समझता है, अससे तो औश्वर भी दूर भागता है । तुलसीदासजी हमें यही सिखाते हैं।" परशरामका पत्र पढ़ते पढ़ते अितने हंसे कि पत्र आगे पड़ ही न सके । बाकीका मुझे पढ़कर सुनाना पड़ा । उन्हें लिखा - "तुम्हारी ९ पन्नेकी छोटी सी पुस्तक पड़कर मैं तो हँसीके मारे लोटपोट हो गया। जैसा याद है कि अितना तो अक दिन जवानीमें भाँग पी ली थी तब हँसा था । अिसी पत्रमें लिखा "महाभारतमें अर्जुन मात हो जाता है और अन्तमें कोी बचता नहीं, यह वर्णन देकर महाभारतकारने शस्त्रयुद्धकी मूर्खता साबित की है। गीतामें भगवानने अपना वर्णन किया है, यानी गीताकारने भगवानके मुँहमें असा वर्णन रख दिया है । वैसे, भगवान तो अस्प हैं, बोलते चालते नहीं । तब यह प्रश्न रह जाता है कि भगवानके मुँहमें जैसे वचन रखे जा सकते हैं या नहीं ? मेरा खयाल है जरूर रखे जा सकते हैं । भगवानका मतलब है सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ । सर्वशके मुंहसे जो बात निकलती है वह केवल सत्य ही होती है, अिमलिअ वह बड़ाीमें नहीं शुमार होती । मनुष्य अपनी शक्तिका हिसाब नहीं लगा सकता, अिसलि असके मुँहसे वह बात शोभा नहीं देती । मगर सवाल पैदा होने पर कोमी आदमी अपनी अँचाभी ३८२