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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/४१०

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है। वह पवित्र स्त्रीका तेज सह नहीं सकता । असकी चिल्लाहटसे वह कॉप जाता है।" को लिखा " अपने प्रियजनों पर असा प्रेम नहीं रखना चाहिये कि जिससे सुनके अक अक शब्दमें अनके नाराज होनेकी ही गन्ध आती हो। हममें जितना आत्मविश्वास होना चाहिये कि प्रियजन हमसे नाराज होंगे ही नहीं । यह न होगा तो हम प्रियजनों के साथ अन्याय करने लगेंगे।" रेहानाने सुन्दर गजल भेजी है । असके अन्तमें यह है : जफर अससे छुटके जो नस्त की, तो ये देखा हमने कि वाकभी अक कैद खुदीकी थी । न क्रास था, न कोमी जाल था । जार कहता है कि अिससे छूटकर जो छलाँग मारी तो देखा कि सचमुच यह अहंकारकी कैद थी। यह कोी पिंजरा या जाल नहीं था। यह कितना ज्यादा सही है ! आज सेठ.. का पत्र आया । असमें अपनी सम्पत्ति छोड़ देनेके बारेमें पिताको लिखे पत्रकी और पिताको सम्पत्ति बाट ३-९-३२ देनेकी सूचना करनेवाले पत्रकी नकलें साथ थीं । और जैसे कुछ भी न हुआ वैसे सिर्फ अक लकीर लिखी थी कि “ आशा रखता हूँ आपको यह पसन्द आयेगा । सन् २१ में जद आप हमारे यहाँ आये थे, तब मेरी आपसे अित विषयमें बातचीत हुी थी और आपकी असी ही सलाह थी।" पितापुत्रके पत्र हृदयद्रावक हैं और सारी चीज़ अक बड़ा वीरकाव्य है । हिन्दुस्तानकी आज़ादीके अितिहासमें यह चीज़ अमर हो जायगी। प्रतिज्ञा पालनका यह अक अनुपम दृष्टान्त है । कहते हैं कि “मैं तुच्छ व्यक्ति हूँ, मगर प्रतिज्ञाका भंग जिन्दगीमें कभी नहीं किया। अभी तक प्रह्लाद जैसा सम्बंध रहा है । अब रामचंद्रकी तरह पिताकी आज्ञासे सर्वस्वका त्याग करता हूँ।" जेलसे निकलनेके बाद किसानोंको बुलाना, अन सबसे हालचाल पूछना और पिताने लगान लिया है जिस कारण घरमें पैर न रखना यह बड़ी वीरोचित धर्मभावना सूचित करता है। अन्हें बापूने हिन्दीमें पत्र लिखा आपका त्यागपत्र हृदयद्रावक है । पितार्ज का भी औसा है । मेरी राय है कि वे दुसरा कुछ नहीं कर सकते थे । मोह छूटना सामान्य वस्तु नहीं है । अिस युगमें नवयुवकोंमें जो त्यागशक्ति पैदा हुआ है असकी आशा वृद्धोंसे नहीं रख सकते हैं । आपने सर्वस्वका त्याग किया है वह शुचित ही किया है, जिसमें मुझे सन्देह नहीं है । १२१ सालकी बात मैं तो भूल गया था । ३८७