अब स्मरण हुआ। मेरा विश्वास है कि अब आप लोगों के बीचमें प्रेम बढ़ेगा । सम्भव तो है कि अब पिताजी कुछ न कुछ तो त्याग अवश्य करेंगे ही । आपके दिलमें सुनके लिखे वही भक्ति कायम है यह बहुत अच्छी बात है। देवीका अिस त्यागमें सहारा या क्या । वह शिक्षिता है ? मेरी अम्मीद है कि अनका शरीर दिन प्रतिदिन अच्छा होता रहेगा। औश्वर आपकी पवित्रतामें वृद्धि करे । सरदार और महादेव भी आपको धन्यवाद भेजते हैं । त्यागपत्रके बारेमें मैंने पढ़ा था, परंतु अिस वारेमें कुछ भी यहाँसे लिखना मैंने झुचित नहीं माना। क्योंकि आपका खत मुझ तक आने दिया है अिसलिये मितना लिखा है। मेरी सलाह है कि मेरे अिस पत्रको अखबारमें न भेजा जाय । आज सुबह कानजीभाीके लड़कोंकी गिरफ्तारीकी खबर पढ़कर बापू बोले थे " जैसे मुझे देशमें आी हुी कमज़ोरी देखकर आश्चर्य नहीं होता, वैसे ही असे पूरे कुटुम्बोंका कुर्बान होना देखकर भी ताज्जुब नहीं होता। दोनों बातें आज नजर आ रही हैं ।" आज बापू और वल्लभभाीको जेलमें आठ महीने पूरे हुमे । बापूने कहा " महादेवके सात पूरे हु ।" जिस पर वल्लभभाभी ४-९-३२ कहने लगे. "हाँ, परन्तु 'पर्याप्तमिदं अतेषाम् । हमारी तो 'अपर्याप्त' मुद्दत जो है ?" रंगूनसे जो पत्र लिखते थे अनके बारेमें यह शिकायत आया करती थी कि वे सब के लिखाये हुओथे । पत्र अितने स्वाभाविक लगते थे कि बाप्त अिस शिकायतको मानते नहीं थे। आखिर का ही तार आया। असमें उन्होंने बताया कि पत्रोंके मसौदे सब अन्हींके थे । बापूने अिस तारकी नकल को भेज कर लिखा " तुम्हारे जिन पत्रोंका हम सब पर बहुत असर पड़ा था, वे तो सब बनावटी थे। असलमें तुम्हारे नहीं थे, अिसलिओ सुनका मूल्य भी अतना ही लगाया जाय न ? और फिर तुमने यह बात मुझसे छिपाी । अब तो अिन पत्रोंमें की गयी प्रतिज्ञायें पूरी करो !" वल्लभभाभी " अिस तारकी नकल असे किस लि भेज रहे हैं ? असे लिखिये कि मेरे पास असी शिकायत आयी है, क्या वह सच है ? अिस बारेमें तुम्हें क्या कहना है ? अितनेमें वह अच्छी तरह पकड़में आ जायगा । " बापूको यह सचना पसन्द नहीं आी । अिस सूचनाके स्वीकार करने में हिंसा भरी थी । " मनुष्यको झूठ बोलनेका मौका देना और झूठ बुलवाना हिंसा है । हमें जितनी जानकारी है वह असके सामने रख दें और असे झूठ बोलनेका मौका न दें कहने लगे- - ३८८
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