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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/४४

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मैंने कहा " मैंने कहा या बोले " 1 60 " अन्होंने अपनी पुस्तक पानेको दी थी, वह आपको कैसी लगी?" बापू "असमें अंसाधारण तो कोभी बात थी नहीं। और अंग्रेजी में लिखी थी। सुनके शिष्यने अनके विचार दर्ज किये थे, भिसलिझे गड़बड़ घोटाला-सा हो गया था। मैंने अन्हें सुझाया कि आपको लिखना हो, तो गुजराती में लिखिये या अपनी मादरी जबान फारसीमें लिखिये । हम पराभी भाषामें क्यों लिखें ? अन्हें यह सूचना पसन्द आयी । - “ सुनको मुखमुद्रा पर अक तरहकी प्रसन्नता है।" " हाँ, जरूर है । और अनका दावा भी है कि अन्हें सदा आनंद ही आनंद है । वे मानते हैं कि अन्हें साक्षात्कार हुआ है । वे बाल- ब्रह्मचारी हैं और सुनका कहना है अन्हें विकार नहीं होते। और मुझे वे सचे आदमी मालूम होते हैं । अनमें आडम्बर तो है ही नहीं । आज सुबह स्टोक्सकी पुस्तक पढ़ते पढ़ते अकाक कहते है "तुम्हारे • पास श्रीशोपनिषद् है.। असके १८ मंत्रोंमें सब कुछ भर दिया गया है, या सिर्फ पहले ही मंत्रमें । असे बार बार पड़नेको जी चाहता है । सारे श्लोक रट लेनेको तबीयत होती है।" " मेरे पिताने मुझे बचपनमें ये रटाये थे वे -किताबमेंसे पढ़ते थे । मेरे काका अनके शिष्य थे।" बापू. “नाथूराम शर्माकी यह पुस्तक अच्छी है । असका अनुवाद पटनेमें अच्छा लगता है । नाथूरामका असर कोभी औसा वैसा नहीं था । मैं " अक समय सुबह शाम संध्या किये बिना हमें खानेको नहीं मिलता था । मेरे काकाका असा कड़ा नियम था ।" बापू --- "हाँ, अनमें बहुत अच्छाअियाँ थीं । बादमें आडम्बर बढ़ गया और काम बिगड़ गया । मैंने सारे अपनिषदोंका अनुवाद अन्हींका पड़ा था और वह अच्छा लगा। - नाथूराम शर्माकी - " आज केडल कमिश्नर आया था। 'महादेवराव' देसाीका हाल पूछा या। मगर मैं शौच गया था। वह बापूसे कहने लगा २६-३-३२ "अिस बार लड़ाीमें सरकार और लोग दोनों तरफसे कड़वापन नहीं है । मुझे लोगोंको जितना credit (श्रेय) देना चाहिये । वापूने कहा था “ You may keep the credit and let us have the cash - यह 'श्रेय' आप रखिये और नकद हमें दे दीजिये ।" बादमें कहने लगा " यहाँ मेरे हलकेमें तो महात्माको ९५फी सदी लोग नहीं जानते, मगर मुझे जानते है ।" यह आदमी बापूको गोधराके