पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/५७

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ररिकनने Unto this Last ( अण्टु दिस लास्ट) और Fors (फोर्स) लिखकर अपने कलाजीवन पर कलश चढ़ा दिया । मैंने कहा- "टॉल्स्टॉय तो क्रान्तिकारी था, अिसलि असने जीवनमें भी परिवर्तन किया । और रस्किन विचार देकर बैठा रहा।" बापू बोले . " यह तो बहुत बड़ा फर्क है न ? टॉल्स्टॉयका-सा जीवन-परिवर्तन रस्किनमें नहीं है। " वल्लभभाीने कहा " लेकिन आज रस्किनका नाम तो विलायतमें सचमुच कोसी नहीं लेता न ?" ." हाँ, नहीं लेता, मगर रस्किन भुलाया नहीं जा सकता। असका जमाना आ रहा है । असा समय आ रहा है कि जिसने रस्किनको नहीं सुना और असके बारेमें लापरवाही दिखाी, वह रस्किनकी तरफ मुड़ेगा ।" बापू बोले

तिलकन् नामका जो विद्यार्थी आश्रममें आया हुआ है असे लिखा : "Vanity is emptiness: Self-respect is substance. No one's self-respect is ever hurt except by self, vanity is always hurt from outside. "In the phrase 'Seeing God face to face', 'face to face" is not to be taken literally. It is a matter of decided feel- ing. God is formless. He can, therefore, only be seen by spiritual sight-vision." घमण्ड थोया होता है। स्वाभिमान टोस चीज है । किसीके स्वाभिमानको दुमरेसे ठेस नहीं पहुंच सकती । स्वाभिमानको धक्का अपनेसे ही लगता है । चूंकि घमण्डको सदा बाहरसे ही आघात लगता है, जिससे दूसरे असको ठेस पहुंचा सकते हैं। " भीश्वरको साक्षात् देखना, अिस प्रयोगमें साक्षात् 'का अर्थ अक्षरशः नहीं लेना चाहिये । यह प्रयोग तो हमारी भावनाकी निश्चितता बतानेके लिओ है । वैसे अीवर तो निराकार है । वह तो आध्यात्मिक अन्तर्दृष्टिसे ही दिख सकता है। अक और पत्रमें वापने लिखा: " जैसे अक पेड़के पत्ते साथ ही रहते हैं, असी तरह समान आचार- विचारवालोंकी बात है। यह स्वाभाविक आकर्षण है। "सायी-सहयोगी करोड़ों हो सकते हैं । मित्र तो अक अीश्वर ही है । दुसरी मित्रता ीश्वरकी मित्रतामें बाधक है, यह मेरा मत और अनुभव है । "मैं यह जानता या मानता नहीं कि कृष्ण भगवान योगवलसे या दूसरे चलने भौतिक साधनोंके बिना आया जाया करते थे। सच्चे योगी विभृति "