पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

"मैंने राजमहल जैसा कहकर सुसने सब बहनोंसे प्रार्थना-मन्दिरमें जमा होनेको कहा। अस भीड़मेंसे पाँच आदमियोंको हथियार बाहर रखकर अन्दर आने दिया गया। अन्हें वह सीसाके कासके पास ले गयी। वे मंत्रमुग्धकी तरह, जहाँ वह ले गयी, चले गये और असके साथ अन्होंने क्रॉसके सामने पैर पड़े। फिर मिस महिलाने अन्हें कहा अव जो चाहिये हूँ लो और ले जाओ।" अन्होंने अिधर अधर दैव-हाड़ की और फिर बाहर निकलकर कहा "अरे यह तो वेकारका अक आश्रम है, आश्रम । यहाँ तो और कुछ भी नहीं ।" यह तूफ़ान तो आया और चला गया । रूसमें ज़ारके भाग जानेके बाद प्रजाने सत्ता हाथमें ले ली थी । मगर जिस पक्षके हाथमें सत्ता थी, उससे प्रजाके दूसरे अग्र दलको सन्तोष नहीं था। अिसलि पहले पक्षवाले, जिन्होंने कामचलाभू सरकार कायम की थी, मेलिजाबेथसे आकर कहने लगे -"प्रजा पागल बन गयी है और तुम्हें बचना हो तो आश्रम छोड़कर क्रेमलिनके राजमहलमें चलो । वहाँ तुम ज्यादा सुरक्षित रहोगी।" मगर अलिजावेथने तो पक्के निश्चयके साथ अपना जीवन सेवामें अर्पण किया था । अिसलिभे असने आश्रमसे हिलनेसे अिनकार कर दिया । असने कहा छोड़ा है, तो असे क्रांतिकारियोंके खिलाफ अस महलका फिरसे आश्रय लेनेके लिअ नहीं । तुम मेरे आश्रमकी रक्षा नहीं कर सकते, तो असे ीश्वर पर छोड़ दो। जिस तरह दावानल सुलग चुका था, तो भी घायल सिपाहियोंकी सेवा करनेका, मरनेको पड़ी हुी स्त्रियोंको आश्वासन देनेका, गरीबोंको राहत देनेका और बाकीके समयमें भजन-कीर्तनका अपना काम असने जारी ही रखा। दूसरी तरफ बोल्शेविक अस कामचलाभू सरकारको भंग करनेकी कार्रवाओ कर रहे थे। अस समय अिसने अक मित्रको अंक पत्र लिखा । असमें बताया : " असे समय ही औश्वर-श्रद्धाकी सच्ची परीक्षा होती है । जैसी परीक्षामें भी शान्त और प्रसन्न रहनेवाला ही कह सकता है कि 'प्रभु, तेरी भिच्छा पूरी हो ।' हमारे प्यारे रूसके आसपास विनाशके सिवा और कुछ दिखाी नहीं देता। अितने पर भी मेरी श्रद्धा अचल है कि जैसी कसौटी पर कसनेवाला रुद्र ीश्वर और दयालु कृपानिधान ीश्वर अक ही है । बड़े तुफानकी कल्पना कीजिये ! क्या असमें भी भयंकरके साथ भव्य अंश नहीं होते ? कुछ लोग रक्षाके लो भागदौड़ करते हैं, कुछ डरके मारे ही मर जाते हैं, जब कि कुछ लोग अिस बड़े तूफानमें भी ीश्वरकी महत्ताका दर्शन करते हैं । क्या आज हमारे आसपास जैसा ही तूफान नहीं मचा हुआ है ? हम तो काम, सेवा और प्रार्थनामें ड्वे 'रहते हैं । हमारी आशा अखंड है। रोजमर्रा होनेवाली अिन > -