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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/६९

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तमाम घटनाओंमें हम तो भगवानकी दयाका ही दर्शन कर रहे हैं। क्या यही अक चमत्कार नहीं है कि असे समयमें भी हम आशा रखकर जी रहे हैं ?" अन्तमें बोल्शेविकोंकी जीत हुी, तो थोड़े ही दिन बाद लाल सेनाकी जिसके आश्रम पर चढ़ाभी हुओ । फौजके अफसरने हुक्म दिया कि शाही परिवारके साथ अिक्टेरिन्वर्गमें जमा होनेके लि चलो । अिसने आश्रमकी सब बहनोंसे मिल लेनेकी अिजाजत माँगी । मगर अिजाजत नहीं मिली । अक और बहनके साथ अिसे ले जाकर ट्रेनमें बैठा दिया गया। रास्तेसे अिसने आश्रमकी बहनों नाम विदाीका पत्र लिखा । अिक्टेरिन्वर्गमें जार और ज़ारीनाके साथ अिसे थोड़े दिन कैद रखा गया । वहाँसे वापस अस बहनके साथ अिसे भी ले जाया गया । राजकुटुम्बके और सब लोगोंका अिसके यहाँ मिलाप हो गया । सब कैदी थे । खाने पीने और पहनने ओढ़नेकी तंगी थी । ये सब बेचारे मौतकी राह देख ही रहे थे । १७ जुलाश्रीको अिक्टेरिन्वर्गमें ज़ार जारीनाकी हत्या हुी । १८ जुलाीको बोल्शेविक जल्लाद डचेस और राजकुमारों के आसपास आ पहुँचे । सबकी आंग्वों पर पट्टियाँ बाँध दी गयीं । और पासमें लोहे की कतरनका ढेर पड़ा था, असमें सबको डाल दिया गया । किसीने असमें सुरंग लगा दी और घड़ीभर में धड़ाका होते ही सब चूर चूर हो गये । अस टेर पर डाले जाते समय अलिजावेयने जो शब्द कहे थे, वे दूर खड़े अक किमानको सुनाी दे गये भगवान अिन लोगोंको क्षमा करना । ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।' आज सुबह घूमते घूमते अक मुस्लिम नेताकी बात निकली । वल्लभभाभी बोले -"ये भी संकटके समय मुसलमान बन गये थे । ३०-३-३२ मुसलमानोंके लिभे अलग सहायता कोश चाहते थे, असके लिये अलग अपील कराना चाहते थे ।" बापू कहने लंग भिममें अिनका कसर नहीं है । हम असे हालात पैदा करते हैं, तब में क्या करे ? हमने जिनके लिये क्या रखा है ? जैसे हम अछूतोंको समझते हैं, येसे बहुत जगहों पर अिन्हें भी मानते हैं । अमनुलको मुझे देवलाली भग्ना हो, तो असे के पास भेज सकता है ? मच बात तो यह है कि हमें भिम भाटिया मेनेटोरियममें, जहाँ मर जाकर न रह सकते हों अमनुष्ट न जा सके-जाना ही न चाहिये । यह बात तो तब मिटे, जान्दि आगे याकर कदम उठायें | आज तो दोनों कोमंकि बीत्र अन्तर मगर वह अन्तर ती घंटेगा, जय हिन्दू जाग्रत हो और भने यानांर देंगे। अंक ममय अमा होगा जय अिन मय मनित यातों की ना ही होगी। आज जिनकी जरत नहीं है ।" वल्लभभाश्री - जहाँ